Advertisement
उत्तर प्रदेशलाइव अपडेट
Trending

अखिलेश यादव के बयान ने अयोध्या दीपोत्सव में विवाद को जन्म दिया

Advertisement
Advertisement

उत्तर प्रदेश की राजनीति में फिर एक बयान ने हलचल मचा दी है। समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने शनिवार को अयोध्या में आयोजित होने जा रहे दीपोत्सव को लेकर कहा कि “पूरी दुनिया में क्रिसमस के दौरान शहर जगमगा उठते हैं … हमें उनसे सीखना चाहिए। हमें दीयों और मोमबत्तियों पर क्यों खर्च करना और इतना क्यों दिमाग लगाना?”

उनका यह बयान विशेष रूप से विवादित हुआ है क्योंकि अयोध्या में इस वर्ष 26 लाख से अधिक दीयों के साथ दीपोत्सव मनाया जाना है — जिसमें सरयू नदी किनारे और घाटों पर बड़े पैमाने पर रोशनी व सजावट की गई है।


घटना-परिस्थिति

– अयोध्या में आयोजित होने वाले इस उत्सव से कुछ दिन पहले, एक पत्रकार ने अखिलेश यादव से पूछा कि इस बार दीयों की बजाय मोमबत्तियां जलाई जा रही हैं, संख्या कम है — इस पर उन्होंने प्रतिक्रिया दी कि वे सुझाव नहीं देंगे, लेकिन “भगवान राम” के नाम पर एक सुझाव देना चाहेंगे।
– उन्होंने कहा कि जब पूरा विश्व क्रिसमस में जगमगा उठता है, तब हमें यह देखना चाहिए और “भीड़ में क्यों शामिल होना चाहिए कि दीए-मोमबत्ती पर खर्चा क्यों करना?” इस सरकार से क्या उम्मीद की जा सकती है?”
– इस बयान के बाद पर्यायवाची राजनीतिक प्रतिक्रिया सामने आई — भाजपा ने उसे तुरंत निशाना बनाया, कहा कि समाजवादी पार्टी का इतिहास राम मंदिर आंदोलन का विरोध करने तथा हिन्दू भावनाओं के खिलाफ बातें करने का रहा है।


विश्लेषण

इस बयान के कई मायने हैं:

  1. धार्मिक-सांस्कृतिक विमर्श में राजनीति: दीपोत्सव जैसे अध्यात्म-परंपरागत आयोजन पर टिप्पणी करते हुए, यादव ने इसे सिर्फ धार्मिक नहीं बल्कि व्यय एवं आयोजन के दृष्टिकोण से देखा है। यह दृष्टिकोण किसी धार्मिक भावना के प्रतीक को एक व्यावहारीक या आर्थिक प्रश्न के रूप में उठा रहा है।

  2. तुलना-संदर्भ: क्रिसमस की चमक-धमक का उदाहरण देते हुए, उन्होंने भारतीय त्योहारों में हो रहे खर्च-प्रचार पर सवाल उठाया है — यह एक सामाजिक-नियमितीय सवाल है कि क्या धार्मिक आयोजनों में पारंपरिक ध्रोहर्यों के ऊपर व्यय बढ़ाना उचित है या नहीं।

  3. चुनावी-रणनीतिक आयाम: यह बयान ऐसे समय आया है जब उत्तर प्रदेश में अगले चुनावों को दृष्टिगत रखते हुए राजनीतिक हलचल तेज है। अयोध्या जैसे धार्मिक रूप से संवेदनशील स्थान पर कोई टिप्पणी सहजता से बहस का विषय बन जाती है।

  4. सांस्कृतिक संवेदनशीलता: हालांकि टिप्पणी शायद व्यय-बचत या आयोजन-प्रबंधन की ओर इंगित करती है, लेकिन धार्मिक आयोजन में ‘दीए-मोमबत्ती’ जैसे प्रतीकों को कम आंका जाना धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचा सकता है — और राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों द्वारा इसे अवसर के रूप में लिया गया है।


आगे की चुनौतियाँ

– अब देखने की बात यह है कि क्या यादव या उनकी पार्टी इस बयान पर पीछे हटेंगी या इसे उस दिशा में आगे बढ़ाएँगी जहाँ आयोजनों की लागत-प्रभावित समीक्षा हो।
– दूसरी ओर, आयोजन समिति और राज्य सरकार के समक्ष यह चुनौती होगी कि धार्मिक-सांस्कृतिक आयोजनों के दौरान खर्च-प्रबंधन, पारदर्शिता, स्थानीय व्यापार-विकल्‍पों को कैसे संतुलित किया जाए।
– साथ ही, यह मामला इस बात की याद दिलाता है कि धार्मिक आयोजनों व सार्वजनिक-सांस्कृतिक समारोहों के संदर्भ में राजनीतिक बयान कितनी तेजी से «संवेदनशील मुद्दा» बन सकते हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
YouTube
LinkedIn
Share