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भाई दूज-तिलक की सही विधि और इसका धार्मिक महत्व, जानें इस पर्व से जुड़ी मान्यताएं

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भाई दूज का पर्व हर साल दीपावली के कुछ दिनों बाद मनाया जाता है और इसे भाइयों-बहनों के स्नेह और आत्मीयता का प्रतीक माना जाता है। इस दिन बहनें अपने भाई के माथे पर तिलक लगाकर उसकी लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। यह त्योहार रक्षाबंधन की तरह ही भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को मजबूत करने का अवसर देता है।

पौराणिक मान्यता के अनुसार, इस दिन मृत्यु के देवता यमराज अपनी बहन यमुना के घर भोजन करने गए थे। यमुना ने बड़े प्रेम से उनका स्वागत किया, तिलक लगाया और आदर-सत्कार किया। प्रसन्न होकर यमराज ने कहा कि जो भाई इस दिन अपनी बहन के हाथों से तिलक करवाएगा, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहेगा। तभी से यह पर्व “यम द्वितीया” के नाम से भी प्रसिद्ध है।

इस दिन बहनें ताम्बे या चांदी की थाली में तिलक सामग्री जैसे रोली, चावल, दीपक, फूल और मिठाई रखती हैं। भाई को तिलक लगाते समय कुछ धार्मिक नियमों का पालन करना शुभ माना गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार तिलक लगाते समय अंगूठे (थंब) का प्रयोग करना चाहिए। ऐसा करने से शुभ ऊर्जा का संचार होता है और भाई के जीवन में समृद्धि बढ़ती है। आमतौर पर लोग अनामिका उंगली से तिलक लगाते हैं, लेकिन इसे कम प्रभावी माना गया है।

पूजन के बाद बहन भाई को मिठाई खिलाती है, आरती उतारती है और आरोग्य-दीर्घायु की प्रार्थना करती है। बदले में भाई बहन को उपहार या आशीर्वाद देता है और यह वादा करता है कि वह हमेशा उसकी रक्षा करेगा।

धार्मिक दृष्टि से देखा जाए तो भाई दूज न केवल परिवारिक प्रेम का उत्सव है, बल्कि यह आपसी सम्मान, अपनापन और निस्वार्थ रिश्तों की पहचान भी है। इस दिन भाई-बहन के बीच की छोटी-बड़ी दूरियाँ मिट जाती हैं और परिवार में खुशियों का माहौल बनता है।

भाई दूज का पर्व इस बात की याद दिलाता है कि जीवन में भौतिक चीज़ों से अधिक महत्वपूर्ण रिश्ते और अपनापन हैं — और यही इस त्योहार का असली संदेश है।

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