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दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता अलर्ट — Central Pollution Control Board के आंकड़े दर्शाते हैं “बहुत खराब” स्तर की वायु

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दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में वायु प्रदूषण की स्थिति जटिल होती जा रही है। हाल ही में मिले Central Pollution Control Board (CPCB) के आंकड़ों के अनुसार, Greater Noida की 24-घंटे की औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 282 दर्ज गई है, जिसे “Unhealthy” यानी ‘अस्वास्थ्यकर’ श्रेणी में रखा गया है।

यह केवल एक संख्या नहीं है, बल्कि सभी के लिए चेतावनी है — खासतौर पर बच्चों, वृद्धों तथा श्वसन सम्बन्धी पूर्व-रोगियों के लिए। यह उस क्षेत्र में नवीनतम संकेत है जहाँ मौसम, यातायात, निर्माण कार्य व कूड़े-धूल जैसी गतिविधियाँ मिलकर वायु की गुणवत्ता को लगातार नीचे खिसका रही हैं।

विश्लेषण करें तो पहले से मौजूद निम्न-गति हवाओं, घटती तापमान तथा बढ़ती धूल-उड़न जैसे कारक इस झुकाव (trend) को और तीव्र बना रहे हैं। इन परिस्थितियों में प्रदूषक कण (PM2.5, PM10) लंबे समय तक वायुमंडल में बने रहते हैं और हवा के अतिप्रवाह (ventilation) की कमी उन्हें नीचे सतह पर रोकती है, जिससे आस-पास का वातावरण घुटन-भरा हो जाता है।

विशेष रूप से Greater Noida में PM2.5 व PM10 की मात्रा बढ़ चुकी थी, जिससे AQI “严重 (Severe)” स्तर तक पहुंचने की संभावना पैदा हो गई है। यह स्थिति सिर्फ एक दिन की नहीं बल्कि एक जारी प्रवृत्ति का हिस्सा है, जहाँ दिल्ली-एनसीआर लगातार “Poor” से “Very Poor” श्रेणियों की ओर बढ़ रहा है। उदाहरण के लिए, पिछले दिनों Noida ने “Very Poor” श्रेणी में दर्ज उच्च AQI दर्ज किया था।

यहाँ यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि वायु गुणवत्ता पर केवल स्थानीय स्त्रोतों का असर नहीं है, बल्कि पड़ोसी राज्यों से आने वाली धूल-उड़न, कृषि आधारित खुली जलने की प्रक्रिया, निर्माण गतिविधियों से निकलने वाला धूल-कण, वाहनों द्वारा उत्सर्जित धुआँ और मौसम की बदलती गतिशीलताएँ मिल-जुलकर असर डालती हैं। उदाहरण के तौर पर, हवा की गति कम होने पर धूल व धुँआ नीचे सतह पर घिरे रहते हैं, जिससे लोगों को घुटन, आँखों में जलन, गला खराश या खांसी जैसी शिकायतें हो सकती हैं।

इससे शहर-वासियों के लिए कुछ प्रत्यक्ष और इन-घर/बाहर सुरक्षा-उपाय बेहद महत्वपूर्ण हो जाते हैं:

राजनीतिक व प्रशासनिक दृष्टि से देखा जाए तो इस तरह की वायु-गुणवत्ता गिरावट बड़ी चिंता का विषय है। सार्वजनिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाला असर, अस्पतालों में श्वसन रोगियों की संख्या में वृद्धि, दैनिक जीवन-गतिविधियों में बाधा — ये सभी संभावित खतरें हैं। स्थानीय प्रशासन एवं राज्य सरकारों को मिलकर स्रोत-नियंत्रण, वायु-मापन-उपकरणों का बेहतर उपयोग और सख्त अनुपालन-नियम सुनिश्चित करने होंगे।

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