नीतीश कुमार की अगुआई वाली जनता दल (यूनाइटेड) ने बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए पहली उम्मीदवार सूची जारी की है, जिसमें कुल 57 सीटों पर दावेदारों के नाम सामने आए हैं। इस सूची में खासतौर पर वह पाँच सीटें शामिल हैं, जो पहले चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के कोटे के हिस्से मानी जा रही थीं, जिससे यह संकेत मिल रहा है कि जेडीयू ने एनडीए के सीट-बंटवारे के परम्परागत फॉर्मूले को चुनौतियों के दायरे में ला दिया है।
इस कदम से यह सवाल उठ रहा है कि क्या नीतीश कुमार ने जानबूझ कर चिराग पासवान को “पांच का पंच” दिया है, यानी उनकी मांग की गई सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार कर गठबंधन के अंदर टकराव को बढ़ावा दिया है।
पूर्ववर्ती सीट-बंटवारे के अनुसार, जेडीयू और बीजेपी को 101-101 सीटें मिलनी थीं, जबकि बाकी की सीटों का बंटवारा सहयोगी दलों में किया जाना था। चिराग पासवान की एलजेपी (रामविलास) को 29 सीटें मिलने का प्रस्ताव रखा गया था।
लेकिन जब जेडीयू ने उन सीटों पर उम्मीदवार दिए जो पहले चिराग को जाने वाली थीं — जैसे सोनबरसा, मोरवा, एकमा, राजगीर — तब स्पष्ट हो गया कि संगठन अपनी “स्थायी सीटें” छोड़ने को तैयार नहीं है।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार यह कदम एनडीए के आंतरिक सामंजस्य को झकझोरने वाला हो सकता है। चिराग पासवान और उनकी पार्टी इस पर खासे नाराज हैं, और उन्होंने संकेत दिया है कि वे कभी-कभी अलग रुख अपना सकते हैं।
साथ ही, अन्य सहयोगी दल जैसे जीतनराम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा भी अपनी नाराजगी जता चुके हैं कि उन्हें वांछित सीटें नहीं मिली हैं, और वे इस फैसले को न्याय की प्रक्रिया से हटाने की तरह देख रहे हैं।
इस बीच, जेडीयू ने इस सूची में अपने भरोसेमंद और अनुभवी नेताओं को ही प्राथमिकता दी है — कई दिग्गज और पूर्व मंत्री इस लिस्ट में शामिल हैं — यह दिखाने के लिए कि पार्टी यह सुनिश्चित करना चाहती है कि सीटों पर उसकी पकड़ बनी रहे।
यह पूरी राजनीति यह संकेत देती है कि बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एनडीए के भीतर ‘सदभाव’ का चित्र सतही ही हो सकता है — अंदर बहुत कुछ उफान पर है। सीट-बंटवारे की यह खींचतान भविष्य में आरोप-प्रत्यारोप, टिकट विवाद और गठबंधन टूटने की सम्भावनाओं को जन्म दे सकती है।
