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पाकिस्तान में विवादित कानून पर बवाल: सेना प्रमुख आसिम मुनीर को मिली असीम शक्तियाँ, जनता सड़कों पर – लोकतंत्र पर खतरे की घंटी

General Asim Munir

पाकिस्तान में एक नया कानून पारित होने के बाद राजनीतिक संकट और विरोध प्रदर्शनों की लहर तेज हो गई है। देश की संसद ने हाल ही में एक ऐसा विवादित कानून पारित किया है, जिसने सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर की शक्तियों को और अधिक बढ़ा दिया है। विपक्षी दलों और नागरिक संगठनों का आरोप है कि यह कानून पाकिस्तान को एक ‘सैन्य तानाशाही’ की ओर धकेल रहा है, जबकि सरकार का कहना है कि यह कदम सुरक्षा और स्थिरता बनाए रखने के लिए उठाया गया है।

इस कानून के तहत सेना प्रमुख सहित सभी शीर्ष सैन्य अधिकारियों की सेवा अवधि तीन साल से बढ़ाकर पाँच साल कर दी गई है। इतना ही नहीं, इस कानून के जरिए सेना को नागरिक विरोध प्रदर्शनों और “राज्य विरोधी गतिविधियों” पर कड़ी कार्रवाई करने का भी अधिकार दे दिया गया है। विरोधियों का कहना है कि अब किसी भी नागरिक या राजनेता को सैन्य कानूनों के तहत गिरफ्तार और ट्रायल किया जा सकता है — जो पाकिस्तान के संविधान और लोकतांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ है।

पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान और उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) ने इस कानून को “असिम लॉ” (Asim’s Law) करार दिया है। उनका कहना है कि यह कानून देश को सेना के अधीन कर देगा और लोकतांत्रिक सरकारों को केवल दिखावा बना देगा। इमरान खान ने कहा — “यह कानून पाकिस्तान को लोकतंत्र से हटाकर एक कठोर सैन्य शासन की तरफ ले जा रहा है।”

पाकिस्तान के कई शहरों में इस कानून के विरोध में व्यापक प्रदर्शन हुए हैं। राजधानी इस्लामाबाद, कराची, लाहौर और पेशावर में हजारों लोगों ने सड़कों पर उतरकर नारेबाजी की। इन प्रदर्शनों के दौरान कई विपक्षी नेताओं और कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया। सोशल मीडिया पर #NoToMilitaryLaw और #SaveDemocracyInPakistan जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे।

वहीं, पाकिस्तानी सेना और सरकार ने इस कानून का बचाव करते हुए कहा है कि देश में कोई मार्शल लॉ लागू नहीं किया गया है। सेना ने अपने बयान में कहा कि यह संशोधन सिर्फ सुरक्षा नेतृत्व में स्थिरता लाने और आतंकवाद व सीमा पार चुनौतियों से निपटने के लिए जरूरी है। सरकार का कहना है कि यह कानून देश की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति का हिस्सा है, न कि लोकतंत्र को कमजोर करने का प्रयास।

हालांकि, विश्लेषकों का मानना है कि इस कानून से पाकिस्तान में नागरिक-सैन्य संबंधों में तनाव और बढ़ सकता है। यह कानून न केवल विपक्ष को कमजोर करता है, बल्कि नागरिक संस्थाओं की स्वतंत्रता पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है। कई अंतरराष्ट्रीय एजेंसियाँ और मानवाधिकार संगठन इस कानून की समीक्षा की मांग कर रहे हैं, क्योंकि इससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और न्यायिक पारदर्शिता पर खतरा मंडरा रहा है।

पाकिस्तान पहले से ही आर्थिक संकट, आतंकवाद और राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहा है। ऐसे में सेना की बढ़ती भूमिका ने देश के लोकतांत्रिक भविष्य को और अनिश्चित बना दिया है। अगर विरोध की यह लहर और तेज होती है, तो यह स्थिति न सिर्फ पाकिस्तान के भीतर, बल्कि दक्षिण एशिया की क्षेत्रीय स्थिरता पर भी असर डाल सकती है।

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