कृषि क्षेत्र में वर्षों से एक जटिल समस्या बनी हुई थी — जंगली जानवर जैसे हाथी, सूअर, हिरण, नीलगाय, बंदर आदि द्वारा फसलों को होने वाला प्रत्यक्ष नुकसान। यह विशेषकर उन किसानों के लिए गंभीर रहा है जो वन क्षेत्रों, पहाड़ी या नदियों-नालों के करीब खेती करते हैं। इस तरह की फसल क्षति अब तक मुख्य बीमा योजनाओं के दायरे में नहीं आती थी, जिससे किसानों को भारी वित्तीय बोझ उठाना पड़ता था।
लेकिन अब Pradhan Mantri Fasal Bima Yojana (PMFBY) में एक महत्वपूर्ण संशोधन प्रस्तावित किया गया है, जिसके तहत जंगली जानवरों द्वारा फसल नुकसान को “स्थानीयकृत जोखिम” (localized calamity) की श्रेणी में शामिल किया जा रहा है। इसके अंतर्गत राज्यों को निर्देश दिया गया है कि वे उन जिलों और बीमा इकाइयों की पहचान करें जो इस समस्या से सबसे अधिक प्रभावित हैं, तथा वन क्षेत्रों के आसपास और जलभराव वाले क्षेत्रों में आने वाली फसल क्षति को बीमा दायरे में लाया जाए।
अधिकारियों ने बताया है कि इस बदलाव के तहत किसानों को फसल नुकसान की सूचना 72 घंटों के भीतर दर्ज करानी होगी, जिसमें जियो-टैग्ड फोटो और अन्य विवरण चाहिए होंगे। इस प्रकार प्रक्रिया तेज होगी और बीमा दावा प्रस्तुत करने की प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ेगी। इसके साथ यह भी बताया गया है कि रबी 2025-26 सत्र के लिए पंजीकरण 1 दिसंबर से 31 दिसंबर 2025 तक होगा।
इस नई पहल से लाभ उठाने वालों में वे राज्य प्रमुख होंगे जिनमें जंगली जानवरों द्वारा फसल क्षति की समस्या पहले से चल रही है — जैसे कि Odisha, Chhattisgarh, Jharkhand, Madhya Pradesh, Maharashtra, Karnataka, Kerala, Tamil Nadu, उत्तर-पूर्व के राज्य जैसे Assam, Meghalaya, Manipur, Mizoram, Tripura, Sikkim एवं Himachal Pradesh।
विश्लेषण करें तो यह कदम किसानों के हित में एक स्वागत-योग्य बदलाव है। पहले ऐसी क्षति-श्रेणियाँ जो ‘वन गलियारे’, जलभराव, तट-रेखा या नदियों के समीप खेती में सामने आती थीं, बीमा कवरेज से बाहर थीं। अब जब ऐसे जोखिमों को आधिकारिक रूप से माना जा रहा है, तो किसानों को बीमा-सुरक्षा के दायरे में आने का अवसर मिलेगा और वित्तीय असुरक्षा का स्तर कम होगा। इसके साथ-साथ राज्य शासन और बीमा एजेंसियों को मिलकर ऐसे जिलों की पहचान करनी होगी, जहाँ जोखिम अधिक है, और किसानों को समय पर सूचना एवं पंजीकरण की सुविधा मुहैया करानी होगी।
हालाँकि, इसके सफल क्रियान्वयन के लिए कुछ चुनौतियाँ भी हैं। किसानों को समय-बद्ध सूचना देना होगा, ऐप/जियो-टैगिंग जैसी तकनीकी जानकारियाँ इस्तेमाल करनी होंगी, और बीमा एजेंसियों तथा राज्य प्रशासन को इस प्रक्रिया को सहज और पारदर्शी बनाना होगा। यदि यह सब व्यवस्था सुचारू रूप से चले, तो यह पहल किसानों के लिए काफी राहत प्रदान कर सकती है।
