
बॉलीवुड की रंगीन दुनिया में अक्सर सितारों की सार्वजनिक छवि और व्यक्तिगत व्यक्तित्व के बीच फर्क दिखाई देता है। इसी सिलसिले में हाल ही में अभिनेता रोहित सराफ ने इंडिया टुडे कॉन्क्लेव के मंच पर एक ऐसा बयान दिया है जिसने मीडिया और फैंस दोनों में हलचल मचा दी है। उन्होंने अपनी को-स्टार जाह्नवी कपूर को लेकर कहा है कि वह “दूध की धुली” नहीं हैं — यानी कि पूरी तरह निर्दोष या बिल्कुल निष्कलंक नहीं हैं।
रोहित ने अपने इस बयान को हल्के-फुल्के अंदाज में पेश किया, लेकिन इसमें एक स्पष्ट संदेश भी झलकता है: फिल्म जगत में चमक-दमक जितनी दिखती है, उससे कहीं ज़्यादा जटिलताएँ होती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि जाह्नवी अक्सर मस्ती करती हैं और उनसे “मज़ाक” करना उनके लिए सामान्य बात है।
इस दौरान, जब उनसे पूछा गया कि क्या जाह्नवी वास्तव में इतनी सीधी-साधी लड़की हैं, तो उन्होंने तुरंत “नहीं” में जवाब दे दिया और कहा कि दुनिया जानती है कि वे कितनी चतुर और माहिर तरीके से काम करती हैं।
इस बातचीत का एक दिलचस्प पहलू यह था कि यह सब उस फिल्म की चर्चा के दौरान हुआ — रोहित, जाह्नवी और अन्य कलाकार अपनी नई फिल्म “सनी संस्कारी की तुलसी कुमारी” के प्रोत्साहन में शामिल थे। इस दौरान उन्हें वरुण धवन और सान्या मल्होत्रा के साथ साथ कहानियाँ साझा करने का मौका मिला, जिसमें पूर्व में फिल्म की शूटिंग के दौरान किए गए मज़ाक और प्रैंक्स का बखान हुआ। रोहित ने खुलासा किया कि जान्हवी भी इन प्रैंक्स में बराबर की भागीदार रही हैं — यह संकेत कि कैमरे के पीछे उनकी मस्ती और हास्य का अंदाज भी कम नहीं।
जाह्नवी की प्रतिक्रिया भी दिलचस्प थी। उन्होंने यह कहा कि अक्सर लोग बाहरी तौर पर उन्हें बहुत भोली या मासूम समझते हैं, लेकिन ज़िंदगी की सच्ची तस्वीर कहीं और होती है। उन्होंने लोगों से अनुरोध किया कि वे केवल दिखावे पर भरोसा न करें। साथ ही, वरुण धवन ने भी इस मौके का फ़ायदा उठाया और फिल्म की रिलीज़ को लेकर जंग और क्लैश संबंधी सवालों पर अपनी राय रखी।
यह पुराना बॉलीवुड पैटर्न है कि अभिनेत्रियाँ अक्सर “निष्कलंक”, “पवित्र” या “मासूम” छवि से जुड़ी होती हैं — यह एक तरह की अपेक्षा है जो उद्योग और दर्शक दोनों रखते हैं। लेकिन रोहित का बयान इस सामाजिक दबाव को चुनौती देता है। वह यह कहना चाहता है कि एक कलाकार का व्यक्तित्व सिर्फ पर्दे पर दिखाए गए रूप से सीमित नहीं हो सकता — वे अपनी किसी और छटा में भी हो सकते हैं। इस तरह की अभिव्यक्ति यह संकेत देती है कि अब अभिनेत्रियों को पूरी तरह से एक सशक्त इंसान के रूप में देखने की ज़रूरत है, न कि सिर्फ कल्पित “दूध की धुली” छवि में।
चाहे यह बयान हल्का-फुल्का मज़ाक हो या गहरा संदेश — एक बात तो तय है कि अब बॉलीवुड हस्तियों की निजी पहचान, सार्वजनिक छवि और उनकी दुनिया के बीच की सीमाएँ और चर्चा का विषय बन रही हैं। इस बयान ने न सिर्फ जाह्नवी की छवि पर नए प्रश्न खड़े कर दिए हैं, बल्कि यह भी दिखाया है कि कैसे कलात्मक दुनिया में इंसानियत, द्विविधा और स्वाभाविकता का स्थान है।