
पाकिस्तान में इस समय राजनीतिक और सैन्य तंत्र के बीच बढ़ती खींचतान — जिसे ने एक नया मोड़ ले लिया है। हाल ही में, शहबाज शरीफ की सरकार ने अचानक पीएमओ (प्रधानमंत्री कार्यालय) से ऐसा चेहरा हटा दिया है, जिसे माना जाता था कि वह असीम मुनीर का करीबी है। उस व्यक्ति का नाम है बिलाल बिन साकिब।
यह घटना इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि बिलाल बिन साकिब को असीम मुनीर के “आत्मीय” वक़ील/सहयोगी के रूप में देखा जाता था — और उनका हटाया जाना इस बात का संकेत है कि सरकार अब मुनीर को सीधे नियंत्रण में लाना चाहती है। कई विश्लेषक इसे शहबाज-मुनीर तालमेल की स्थिति बदलने की दिशा में एक बड़ा कदम बता रहे हैं।
पिछले कुछ समय से पाकिस्तान में सैन्य और राजनीतिक नेतृत्व के बीच शक्ति संतुलन को लेकर बार-बार खबरें आ रही थीं — विशेष रूप से, असीम मुनीर को पहले-ever Chief of Defence Forces (CDF) बनाए जाने की प्रक्रिया में देरी की सूचना थी। शहबाज शरीफ की ओर से बिलाल बिन साकिब जैसे मुनीर-संबद्धों को हटाना इस जुड़ाव को कमजोर करने की कोशिश की तरह भी देखा जा रहा है।
विश्लेषकों का कहना है कि यह कदम सीधे तौर पर पाकिस्तान में “सिविल–मिलिट्री तालमेल” को फिर से तय करने की कोशिश है — जहाँ सरकार, सेना पर अपनी पकड़ मजबूती से बनाए रखने की कोशिश कर रही है। इसके पीछे यह चिंता भी हो सकती है कि सेना प्रमुख असीम मुनीर और उनके करीबी, सेना-सत्ता में इतनी जड़ें जमाते रहे कि लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार की नीति-निर्माण स्वतंत्रता सीमित हो जाएगी।
अगर इस घटना को बड़े संदर्भ में देखा जाए, तो यह पाकिस्तान में सत्ता संतुलन, सैन्य-राजनीतिक संबंध, और अगली सैन्य संरचना (CDF सहित) को लेकर एक स्पष्ट संकेत है कि अब सत्ता में बैठे लोग यही तय करना चाहते हैं — कि भविष्य में “किसका नियंत्रण” रहे। यह कदम — चाहे वह रणनीतिक हो या मजबूरी — पाकिस्तान के राजनीतिक-सैन्य समीकरणों में नया अध्याय खोल सकता है।



