
अमेरिका ने ताइवान को 11 अरब डॉलर का विशाल हथियार पैकेज मंजूर किया
वाशिंगटन/ताइपे — वैश्विक राजनीतिक और सैन्य परिदृश्य में एक बड़ा मोड़ आता हुआ दिखाई दे रहा है, क्योंकि अमेरिका ने ताइवान को अब तक का सबसे बड़ा हथियार बिक्री पैकेज मंजूर कर दिया है, जिसकी कुल लागत लगभग 11.1 अरब अमेरिकी डॉलर (करीब 93,500 करोड़ रुपये) है। यह निर्णय अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन के तहत लिया गया है और इसे ताइवान की रक्षा क्षमताओं को मज़बूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
इस विशाल हथियार पैकेज में अत्याधुनिक प्रणालियाँ शामिल हैं, जैसे HIMARS रॉकेट सिस्टम, होवित्जर तोपें, जैवलिन और TOW 2B मिसाइलें, एंटी-आर्मर ड्रोन, और अन्य तकनीकी उपकरण। ये हथियार विशेष रूप से ताइवान की असाममित युद्ध (asymmetric warfare) रणनीति के अनुरूप हैं, जिनका उद्देश्य चीन की पारंपरिक सैन्य श्रेष्ठता का मुकाबला करना और किसी भी संभावित आक्रामकता को रोकने के लिए मजबूत रक्षात्मक क्षमता तैयार करना है।
ताइवान की रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि इन हथियारों की खरीद हिस्सा होंगे उस विशेष रक्षा बजट का, जिसे संसद की मंज़ूरी का इंतज़ार है — यह बजट लगभग 40 अरब डॉलर का प्रस्तावित है और उससे ताइवान अपनी सैन्य तैयारियों को और बढ़ाना चाहता है। इस खरीद का उद्देश्य ताइवान को चीन की संभावित सैन्य धमकियों के बीच आत्म-रक्षा की क्षमता देना है, खासकर ऐसे समय जब रक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन 2027 तक ताइवान पर हमला कर सकता है।
हालाँकि ताइवान और अमेरिका इस कदम को क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने का प्रयास बताते हैं, चीन इस निर्णय से बेहद नाराज़ है। चीनी विदेश मंत्रालय ने अमेरिका के इस हथियार सौदे को “एक-चीन सिद्धांत का गंभीर उल्लंघन” करार दिया है और चेतावनी दी है कि यह कदम चीन की संप्रभुता, सुरक्षा तथा क्षेत्रीय स्थिरता को गंभीर रूप से प्रभावित करेगा। चीन ने कहा है कि यह सौदा “ताइवान स्वतंत्रता समर्थक ताकतों” को **गलत सिग्नल भेजता है” और इससे ताइवान स्ट्रेट में तनाव और बढ़ सकता है।
चीन के प्रवक्ता ने यह भी कहा कि ताइवान मुद्दा “चीन-अमेरिका संबंधों की सबसे महत्वपूर्ण और संवेदनशील लाइन” है और किसी भी देश को इस संबंध में **चीनी सुरक्षा व क्षेत्रीय अखंडता पर सवाल उठाने का अधिकार नहीं है”। उन्होंने अमेरिका से तुरंत इस तरह के हथियार सप्लाई को रोकने का आग्रह किया और चेतावनी दी कि “चीन किसी भी परिस्थिति में अपने स्वाभिमान और क्षेत्रीय हितों की रक्षा करेगा।”
ताइवान के राष्ट्रपति लाई चिंग-ते ने अमेरिका के इस समर्थन के लिए धन्यवाद किया और कहा कि यह कदम ताइवान की “आत्म-रक्षा क्षमता को बढ़ाने” तथा क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने में सहायक होगा। उन्होंने कहा कि देश अपनी रक्षा नीतियों को और मजबूत करेगा और आवश्यक संसाधनों को और स्मार्ट तरीके से खर्च करेगा ताकि भविष्य में किसी भी खतरे का सामना अधिक मजबूती से किया जा सके।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह हथियार सौदा अमेरिकी नीति की रणनीतिक निरंतरता को दर्शाता है, जिसमें ताइवान को अमेरिका का मुख्य सुरक्षा भागीदार बनाए रखने की कोशिश की जा रही है, भले ही अमेरिका “एक-चीन नीति” को औपचारिक रूप से मानता रहे। लेकिन इस कदम से यू.एस.-चीन के बीच मौजूदा तनाव और तीव्र हो सकते हैं, क्योंकि दोनों देश पहले से ही व्यापार, तकनीकी और कूटनीतिक मोर्चों पर उलझे हैं।
इस पूरे मामले से न केवल एशिया-प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा पर प्रभाव पड़ेगा, बल्कि वैश्विक रणनीतिक समीकरण भी प्रभावित हो सकते हैं। अगर ताइवान में सैन्य तनाव बढ़ता है, तो इससे आर्थिक, राजनीतिक और सैन्य स्तर पर बड़े देशों के बीच प्रतिस्पर्धा और गहरी हो सकती है।
इसलिए, अमेरिका द्वारा ताइवान को दिया गया यह विशाल हथियार पैकेज केवल एक “हथियार सौदा” नहीं है, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन, रणनीतिक साझेदारी और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के परिदृश्य को बदल सकता है, जिसकी चर्चा आने वाले महीनों और वर्षों में बड़े स्तर पर की जाएगी।



