
बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले दलित वोट बैंक को लेकर सियासी सरगर्मी तेज हो गई है। भीम आर्मी के प्रमुख और आज़ाद समाज पार्टी के नेता चंद्रशेखर आज़ाद उर्फ़ रावण की बिहार में सक्रियता ने स्थानीय दलित नेताओं और पार्टियों की चिंता बढ़ा दी है।
अब तक बिहार की दलित राजनीति में जीतन राम मांझी, चिराग पासवान और मायावती जैसे नेताओं और पार्टियों का दबदबा रहा है। मांझी की पार्टी हम (हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा) एनडीए में है, जबकि चिराग पासवान की पार्टी एलजेपी (रामविलास) भी बीजेपी के साथ रिश्तों को लेकर अक्सर चर्चा में रहती है। मायावती की बसपा का बिहार में सीमित प्रभाव है, लेकिन वह भी दलित वोटों पर अपनी दावेदारी ठोकती रही हैं।
ऐसे में चंद्रशेखर रावण का बिहार में सक्रिय चुनावी अभियान बाकी दलित नेताओं की राजनीति में सेंध लगा सकता है। उनके आने से बीजेपी-जेडीयू गठबंधन, आरजेडी और कांग्रेस सभी अपने-अपने समीकरणों को लेकर सतर्क हो गए हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि बिहार की करीब 16% दलित आबादी चुनाव में निर्णायक भूमिका निभा सकती है। चंद्रशेखर रावण का असर अगर यूपी के बाहर भी दिखा तो यह बिहार के दलित वोटों के बंटवारे को और जटिल बना देगा, जिससे कई सीटों पर मुकाबला त्रिकोणीय या बहुकोणीय हो सकता है।
कुल मिलाकर, बिहार चुनाव में दलित वोट बैंक पर कब्जे के लिए इस बार मुकाबला और दिलचस्प होने वाला है।