
अमेरिका में बढ़ रहे कृषि दबाव और व्यापार तनाव की पृष्ठभूमि में, पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा है कि वे चीन के साथ सोयाबीन खरीद पर बातचीत करने के लिए शी जिनपिंग से चार हफ्ते के अंदर मुलाकात करेंगे। उनका यह बयान उस समय आया है जब चीन ने अमेरिकी सोयाबीन खरीद को लगभग ‘शून्य’ स्तर पर ला दिया है, जिससे अमेरिकी किसानों पर गंभीर दबाव बन गया है।
ट्रम्प ने आरोप लगाया है कि चीन टैरिफ वार को बहाने के रूप में सोयाबीन कारोबार ठप कर रहा है, और यह कदम “बातचीत के नाम पर” किया जा रहा है। उन्होंने अमेरिकी किसानों को भरोसा दिलाया कि अमेरिका ने टैरिफ से जो राजस्व कमाया है, उसका कुछ हिस्सा कृषि क्षेत्र को राहत देने में लगाया जाएगा।
पिछले वर्ष अमेरिका ने लगभग 24.5 अर्ब डॉलर मूल्य का सोयाबीन निर्यात किया था, जिसमें चीन ने 12.5 अर्ब डॉलर मूल्य का हिस्सा खरीदा था। लेकिन इस वर्ष, टैरिफ विवादों के बीच, चीन ने अब तक अमेरिकी सोयाबीन का एक भी ऑर्डर बुक नहीं किया — और यह स्थिति 1999 के बाद पहली ऐसी घटना बनी है।
ट्रम्प यह कहते हुए जो बाइडेन पर भी निशाना साधा कि उनके कार्यकाल में चीन के साथ हुए समझौतों को लागू नहीं किया गया, यह संकेत देता है कि यह मामला सिर्फ कृषि निर्यात ही नहीं, बल्कि दोनों देशों के बीच व्यापक राजनीतिक-आर्थिक संघर्ष का हिस्सा बन गया है।
अमेरिका के किसानों का समर्थन यह दर्शाता है कि इस मुद्दे का लोक-राजनीतिक आयाम भी है — विशेष रूप से मध्य अमेरिका और कृषि प्रधान राज्यों में, जहाँ किसान वर्ग ट्रम्प के समर्थक रहे हैं। यदि चीन वार्ता करने को राजी हो जाता है, तो यह यू.एस.-चीन व्यापार तनाव के एक प्रमुख मोर्चे पर दीर्घकालीन रणनीतिक बदलाव संकेत कर सकता है।
विश्लेषण यह दर्शाता है कि ट्रम्प की योजना सिर्फ “खरीद बढ़ाओ” की मांग भर नहीं, बल्कि चीन के व्यापार नीति और टैरिफ रणनीति पर दबाव बनाने की चाहत है। ऐसे में यदि उनकी रणनीति सफल होती है, तो यह न केवल अमेरिका के कृषि निर्यात को पुनर्जीवित कर सकती है, बल्कि अमेरिका और चीन के बीच व्यापार गतिरोध को नए स्वरूप में पुनर्संयोजित कर सकती है।