
अमेरिका की रेटिंग एजेंसी फिच ने भारत की sovereign क्रेडिट रेटिंग को ‘BBB-’ पर कायम रखा है और इसका आउटलुक स्थिर बताया है। यह रेटिंग सबसे निचले निवेश-ग्रेड की श्रेणी में आती है, लेकिन इसमें संशोधन नहीं किया गया। फिच ने यह निर्णय भारत की मजबूत आर्थिक वृद्धि और ठोस बाहरी वित्तीय स्थिति को देखते हुए लिया है।
फिच ने यह भी अनुमान जताया है कि चालू वित्त वर्ष 2025-26 में भारत की जीडीपी वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत रहेगी — पिछली दर और ‘BBB’ रेटिंग समूह के औसत (2.5 %) से कई गुना अधिक।
हालांकि, फिच ने भारत के राजकोषीय घाटे और उच्च सरकार ऋण अनुपात को एक चिंतास्पद पहलू बताया है। रेटिंग एजेंसी के अनुसार भारत का सरकारी ऋण-से-जीडीपी अनुपात वर्तमान में लगभग 81 प्रतिशत के आसपास है, जो ‘BBB’ साथी देशों के औसत से काफी अधिक है, और यही दीर्घकालीन सुधार के लिए बाधा बन सकता है।
इसके अलावा, अमेरिका द्वारा प्रस्तावित 50 % आयात शुल्क को एक मध्यम जोखिम बताया गया है। हालांकि यह जीडीपी को समाप्त कर सकता है, लेकिन फिच का मानना है कि इस तरह के आर्थिक झटके अपेक्षाकृत सीमित प्रभाव डालेंगे क्योंकि भारतीय निर्यात में अमेरिकी हिस्सेदारी केवल लगभग 2 प्रतिशत है।
भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित माल एवं सेवा कर (GST) सुधारों—जिनमें दो-स्तरीय दर संरचना को शामिल करने की योजना है—को आर्थिक वृद्धि के समर्थन में कारगर उपाय बताया गया है। यदि ये सुधार लागू हुए, तो घरेलू खपत को बढ़ावा मिलने और कुछ जोखिमों को तटस्थ करने में मदद मिलेगी।
फिच ने यह भी रेखांकित किया है कि बढ़ती सरकारी पूंजी व्यय (‘capex’) और निजी खपत की मजबूती भारत की आर्थिक स्थिरता में मददगार रही है। साथ ही यह संतुलित दृष्टिकोण रखता है कि निजी निवेश अपेक्षाकृत अधिक जोखिमपूर्ण रहेगा, विशेषकर निर्यात संबंधी अनिश्चितताओं के चलते।
इस निर्णय ने वित्तीय और निवेश समुदाय में सकारात्मक प्रतिक्रिया जगाई है। भारत को अन्य विश्व स्तरीय रेटिंग एजेंसियों—जैसे कि S&P और DBRS—से भी रेटिंग उन्नयन मिलने की उम्मीद अब और ज़्यादा मजबूत हो गई है।