मंगलवार 23 सितंबर 2025 को भारतीय मुद्रा रुपया नए निचले स्तर पर पहुँच गई है। विदेशी मुद्रा बाजार में दोपहर के सत्र में रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले ₹88.76 प्रति डॉलर तक गिर गया, जो अब तक का सबसे न्यूनतम स्तर माना जा रहा है।
क्या है वजहें:
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H-1B वीज़ा शुल्क में वृद्धि:
सबसे बड़ी वजहों में से एक है अमेरिकी प्रशासन द्वारा H-1B वीज़ा फीस को बढ़ाना। इस फैसले ने भारत से बड़े पैमाने पर आईटी और सेवा निर्यात सेक्टर को झटका दिया है क्योंकि इस तरह की वीज़ा प्राप्त करने वालों पर आर्थिक दबाव बढ़ेगा। इससे उम्मीद है कि विदेशों से भेजी जाने वाली रेमिटेंस (remittances) और सेवाएँ अमेरिका को देने वालों का कारोबार प्रभावित होगा। -
विदेशी पूंजी प्रवाह में कमी (Foreign Inflows):
वैश्विक निवेशक इस समय नीतिगत अनिश्चितताओं के चलते भारत जैसे उभरते बाजारों से अतिरिक्त जोखिम टालने की स्थिति में हैं। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) ने सोमवार को लगभग ₹2,910 करोड़ के शेयर बेचे हैं, जो संकेत है कि निवेशकों ने कुछ हिस्से जोखिम को कम करने के लिए बाहर निकलना शुरू कर दिया है। -
वैश्विक और घरेलू नकारात्मक माहौल:
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व्यापार नीति (trade policy) को लेकर आशंकाएँ बढ़ी हैं, विशेषकर अमेरिका की ओर से बढ़ती टैरिफ और आयात-निर्यात संबंधी अस्थिरता।
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अंतरराष्ट्रीय बाजारों में जोखिम अधिक हो गया है — डॉलर की मांग बढ़ी है, अन्य एशियाई मुद्राएँ भी दबाव में हैं। इससे रुपया दबाव में आया है।
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आरबीआई की भूमिका और हस्तक्षेप:
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने फिलहाल सीधे बड़े हस्तक्षेप से कतरा रही है। बाजार में अधिक अस्थिरता हो रही है क्योंकि_currency depreciation_ को नए स्तरों तक पहुँचने की अनुमति दी जा रही है, बशर्ते कि गिरावट “स्वयं-संगठित” हो और वित्तीय व्यवस्था प्रभावित न हो।
परिणाम और आने वाले प्रभाव:
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आयात महँगा होगा: डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर होने से आयातित वस्तुएँ जैसे ईंधन, कच्चे माल, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण आदि महँगे हो जाएंगे। इससे उपभोक्ताओं और उद्योगों दोनों पर दबाव बढ़ेगा।
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मुद्रास्फीति (Inflation) में वृद्धि की संभावना: आयात लागत बढ़ने से उपभोक्ता कीमतों में बढ़ोतरी हो सकती है, जिससे मुद्रास्फीति बढ़ेगी।
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निर्यातों को अवसर: दूसरी ओर, निर्यात क्षेत्र को थोड़ी राहत मिल सकती है क्योंकि मुद्रा कमजोर होने से भारतीय सामान विदेशों में सस्ते हो जाएंगे।
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निवेशकों की सतर्कता: घरेलू और विदेशी निवेशक अब और अधिक चेतन होंगे। शेयर बाजारों में अस्थिरता बढ़ेगी, विशेष रूप से उन सेक्टरों में जो विदेशों पर निर्भर हैं — जैसे IT, निर्यात-उन्मुख मैन्युफैक्चरिंग आदि।
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नीति बनाने वालों पर दबाव: सरकार एवं RBI पर इस समस्या से निपटने के लिए नीतिगत और मौद्रिक कदम उठाने का दबाव होगा — चाहे वो टैक्स नीतियों में बदलाव हो, या आयात शुल्कों, या विदेशी पूंजी को आकर्षित करने के उपाय।