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ट्रंप के टैरिफ का असर: भारत की रूसी तेल की माँग गिरी, चीन ने सस्ते तेल का पूरा फायदा उठाया

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नई टैरिफ नीति का असर वैश्विक तेल बाजार पर स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगा है। ट्रंप प्रशासन ने रूस से तेल खरीदने वाले देशों को सेकेंडरी टैरिफ लगाने की चेतावनी दी थी, जिससे भारत जैसे बड़े खरीदार देश पर दबाव बढ़ गया। नतीजतन भारत ने अपनी रूसी तेल आयात में बड़ी कटौती कर दी है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम भारत के लिए ऊर्जा सुरक्षा के लिहाज से चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है क्योंकि रूस भारत का सबसे सस्ता और भरोसेमंद आपूर्तिकर्ता रहा है।

रिपोर्टों के मुताबिक, भारत ने रूसी तेल की खरीद को घटाकर करीब 6 से 7 लाख बैरल प्रतिदिन कर दिया है। यह कटौती उस समय आई है जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें अस्थिर हैं और एशियाई देशों की ऊर्जा मांग लगातार बढ़ रही है। इस बीच, चीन ने इस मौके का पूरा फायदा उठाया है। चीन की रिफाइनरियों ने अक्टूबर और नवंबर महीने के लिए रूस से 15 अतिरिक्त कार्गो खरीदने का फैसला किया है। ऐसा इसलिए क्योंकि रूसी तेल मध्य पूर्वी तेल की तुलना में करीब 3 डॉलर प्रति बैरल सस्ता है।

अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रंप का यह कदम रूस की अर्थव्यवस्था पर दबाव डालने की रणनीति का हिस्सा है। लेकिन इसके अप्रत्यक्ष असर से भारत जैसे देशों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। भारत ने हाल के वर्षों में अपनी ऊर्जा जरूरतों का एक बड़ा हिस्सा रूस से पूरा किया है। अब आयात में कमी का सीधा मतलब यह होगा कि भारत को महंगा तेल खरीदना पड़ेगा, जिसका असर घरेलू महंगाई पर भी पड़ सकता है।

चीन ने इस स्थिति को “सुनहरा अवसर” मानते हुए रूसी तेल पर अपनी निर्भरता और बढ़ा दी है। हालांकि विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन अकेले भारत की घटती मांग की भरपाई नहीं कर पाएगा। रूस को लंबे समय में राजस्व घाटे का सामना करना पड़ सकता है, अगर भारत अपनी आयात नीति में स्थायी बदलाव करता है।

ट्रंप ने फिलहाल चीन पर किसी नए टैरिफ का सीधा ऐलान नहीं किया है, लेकिन संकेत दिया है कि आने वाले 2–3 हफ्तों में इस पर फैसला लिया जा सकता है। यदि अमेरिका चीन पर भी सख्त टैरिफ लगाता है तो स्थिति और जटिल हो सकती है, क्योंकि तब रूस का सबसे बड़ा खरीदार भी प्रभावित होगा।

कुल मिलाकर, इस नई नीति ने वैश्विक ऊर्जा राजनीति को और तनावपूर्ण बना दिया है। भारत अब ऊर्जा सुरक्षा और कूटनीति के बीच संतुलन साधने की कोशिश कर रहा है, जबकि चीन रूस के सस्ते तेल का लाभ उठाकर अपने औद्योगिक उत्पादन और आर्थिक विकास को गति देने की रणनीति अपना रहा है। आने वाले महीनों में यह साफ होगा कि भारत इस दबाव का कैसे सामना करता है और क्या अमेरिका और रूस के बीच बढ़ते टकराव में उसे अपनी ऊर्जा नीति बदलनी पड़ेगी।

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