
देश की सर्वोच्च अदालत ने एक अहम आदेश में फैसला दिया है जिसने बिहार में चल रही एक बड़े निर्माण विवाद की मध्यस्थता (arbitration) प्रक्रिया की दिशा बदल दी है। मामला है Hindustan Construction Company Limited (HCC) और Bihar State Bridge Construction Corporation Limited (राज्य पुल निर्माण निगम) के बीच — सोन नदी पर पुल निर्माण से जुड़ी परियोजना में विवाद के चलते दोनों पक्ष मध्यस्थता के लिए सहमत हुए थे। अदालत ने पटना हाईकोर्ट द्वारा पहले दिए गए उस आदेश को पलट दिया है, जिसमें मध्यस्थता प्रक्रिया को रोकने का निर्देश था।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि एक बार मध्यस्थ नियुक्त हो जाने और सुनवाई शुरू हो जाने के बाद, हाईकोर्ट खुद अपने आदेश को बाद में अमान्य नहीं कर सकता। अदालत ने कहा कि न्यायिक आदेशों और मध्यस्थता प्रक्रिया की विश्वसनीयता की रक्षा करना जरूरी है और भरोसे के साथ काम चलना चाहिए।
न्यायालय ने राज्य पुल निर्माण निगम की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने मध्यस्थता रद्द करने की मांग की थी। कोर्ट ने दो सप्ताह के भीतर नया मध्यस्थ नियुक्त करने का आदेश दिया है, ताकि विवाद का निपटारा उसी प्रक्रिया के तहत हो सके जहाँ से प्रक्रिया रुकी थी। इस प्रकार अब निर्माण विवादों की सुनवाई फिर से शुरू होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकारी निकाय अगर नोटिस पाकर भी चुप रहते हैं — जैसा राज्य पुल निर्माण निगम ने किया — तो यह सार्वजनिक दायित्वों का उल्लंघन माना जाएगा। अदालत ने भविष्य में इस तरह की उदासीनता की स्थिति में व्यक्तिगत जवाबदेही तय किए जाने की चेतावनी दी है।
इस फैसले का मतलब है कि भारत में मध्यस्थता (arbitration) व्यवस्था को मजबूत बने रहने का संकेत है। अदालत ने भरोसा जताया है कि अदालतों का दखल न्यूनतम होना चाहिए, जब दोनों पक्ष पहले से arbitration-agreement पर सहमत हों और मध्यस्थ सुनवाई शुरू हो चुकी हो।



