
भारत जैसे देश में जहाँ पूजा-पाठ, ध्यान, आरती आदि धार्मिक गतिविधियाँ दैनिक जीवन का हिस्सा हैं, वहाँ अगरबत्ती (incense) का उपयोग स्वाभाविक माना जाता है। लेकिन एक हालिया खबर में चेतावनी दी गई है कि यह पारंपरिक अभ्यास स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकता है, खासकर फेफड़ों पर।
अगरबत्ती और धुआँ — क्या है वैज्ञानिक सच?
खबर में कहा गया है कि अगरबत्ती जलाने से PM2.5 और PM10 जैसे सूक्ष्म कण निकलते हैं, जो फेफड़ों में घुसकर जमा हो सकते हैं और समय के साथ एलर्जी, सांस की तकलीफ, ब्रोंकाइटिस, दमा (asthma) आदि समस्याओं को बढ़ा सकते हैं।
वहीं, वैज्ञानिक अध्ययनों ने यह सुझाव दिया है कि अगरबत्ती धुआँ सिगरेट की तुलना में अधिक विषाक्त कणों और रासायनिक यौगिकों को दस्तयाब करा सकता है। उदाहरण के लिए, एक अध्ययन में यह पाया गया कि अगरबत्ती जलाने पर निकलने वाला पी.एम. (particulate matter) चार गुना तक अधिक हो सकता है, और इससे फेफड़ों की कार्यक्षमता पर नकारात्मक असर हो सकता है।
अमेरिका की एक रिपोर्ट कहती है कि अगरबत्ती के धुएँ में कार्बन मोनोऑक्साइड, फॉर्मलडेहाइड, सल्फर ऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे रासायनिक तत्व पाए जाते हैं, जो कैंसरयुक्त (carcinogenic) माने जाते हैं।
एक अन्य अध्ययन में मानवीय फेफड़ा कोशिकाओं पर देखा गया कि अगरबत्ती धुएँ ने उनमें सूजन (inflammation) पैदा की — यह प्रक्रिया वही है जो दमा या श्वसन संबंधी बीमारियों में देखी जाती है।
सिगरेट या अगरबत्ती — कौन अधिक खतरनाक?
यह तुलना करना सहज नहीं है कि क्या अगरबत्ती धुआँ सिगरेट से ज़्यादा खतरनाक है, क्योंकि दोनों का जोखिम कई कारकों पर निर्भर करता है — जैसे कि उपयोग की मात्रा, अवधि, वेंटिलेशन (हवा का संचार), उपयोगकर्ता की स्वास्थ्य स्थिति आदि। लेकिन कुछ बातें साफ हैं:
सिगरेट धुआँ प्रत्यक्ष रूप से तम्बाकू से जुड़ी रसायनियाँ जैसे निकोटिन और तार लेकर आता है, जो अत्यधिक ज्ञात हानिकारक प्रभाव दिखाते हैं।
अगरबत्ती धुएँ में वे ही कण और VOCs (volatile organic compounds) हो सकते हैं जो सिगरेट धुएँ में होते हैं — और यदि अधिक मात्रा में या बंद कमरे में उपयोग किया जाए, तो यदि प्रभाव सिगरेट जैसा नहीं भी हो, कम नहीं हो सकता।
एक अध्ययन में यह बताया गया कि प्रति ग्राम अगरबत्ती जलने पर उतना ही या उससे अधिक कण निकलते हैं जितना कुछ मामलों में सिगरेट जलने पर निकलता है।
इसी बीच, कुछ विशेषज्ञ और अध्ययन यह भी मानते हैं कि मध्यम मात्रा में उपयोग और अच्छी वेंटिलेशन की स्थितियों में अगरबत्ती जलाना बहुत उच्च जोखिम नहीं दर्शाता। ऑस्ट्रेलिया की कैंसर संस्था का कहना है कि यदि उपयोग सीमित है और हवादार स्थान में जलाया जाए, तो जोखिम कम हो सकता है।
स्वास्थ्य पर असर — कौन-कौन सी समस्याएँ हो सकती हैं?
अगरबत्ती धुएँ का नियमित या निरंतर संपर्क निम्नलिखित स्वास्थ्य प्रभावों की संभावना बढ़ा सकता है:
साँस लेने में कठिनाई, खांसी, गले में जलन
दमा या ब्रोंकाइटिस जैसी श्वसन बीमारियों का बढ़ना या बिगड़ना
एलर्जी प्रतिक्रियाएँ, साइनस या नाक-आँखों पर असर
फेफड़ों की कार्यक्षमता में कमी
लंबी अवधि में कैंसर का ख़तरा — विशेष रूप से जब धुएँ में पाए जाने वाले कार्सिनोजेनिक यौगिकों का लगातार संपर्क हो
हृदय एवं रक्तवाहिनी संबंधी प्रभाव — क्योंकि सूक्ष्म कण रक्त परिसंचरण में जा सकते हैं और यहां असर डाल सकते हैं
रोकथाम और बचाव — क्या करें?
जब एक धार्मिक या सांस्कृतिक दृष्टिकोण से अगरबत्ती जलाना सामान्य हो, तब भी हम कुछ उपाय कर सकते हैं ताकि स्वास्थ्य को खतरा कम हो:
हवादार स्थान चुनें — जहाँ धुआँ आसानी से बाहर निकल सके, जैसे खिड़की दरवाज़े खोलें।
जलाने का समय सीमित रखें — लंबा समय तक लगातार धुंआ न दें।
निम्न रसायनयुक्त अगरबत्तियाँ चुनें — प्राकृतिक सामग्री और बिना रसायन युक्त उत्पाद।
वैकल्पिक तरीके अपनाएँ — जैसे इलेक्ट्रिक अगरबत्ती डिवाइस, सुगंधित तेल (essential oil diffusers), या सुखद खुशबू देने वाले अन्य माध्यम।
संवेदनशील व्यक्ति विशेष रूप से सतर्क रहें — जैसे बच्चे, बुज़ुर्ग, एलर्जी या दमे से ग्रस्त व्यक्ति।