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लद्दाख में विरोध की आग

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भारत के लद्दाख क्षेत्र के लेह शहर में हाल ही में हुए हिंसक विरोध-प्रदर्शनों ने एक बार फिर केंद्र और स्थानीय स्तर पर सियासी और सामाजिक हलचल बढ़ा दी है। इस विवाद के केंद्र में पर्यावरणविद् और सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक हैं, जिन पर कई आरोप लगाए जा रहे हैं—इनमें मुख्य हैं विदेशी चंदों का गबन, फंडिंग संबंधी अनियामितियां, NGO खातों की गड़बड़ी और सरकारी दायित्वों की अनदेखी। इन आरोपों ने न केवल उनकी साख को चुनौती दी है, बल्कि प्रशासनिक कार्रवाई की संभावना को भी बढ़ा दिया है।

पिछले कुछ दिनों से लद्दाख में राज्य द्वारा समर्थित कार्यालयों और सार्वजनिक भवनों पर प्रदर्शनकारी पथराव और आगजनी की घटनाएँ देखने को मिली हैं। विशेष रूप से भाजपा कार्यालय को आग लगाने की घटना ने राजनीतिक तनाव को चरम पर पहुँचा दिया। इस प्रदर्शन को स्थानीय संगठनों जैसे NTC (Ladakh’s New Trade Council) और DSKC (District Students & Cultural Council) का समर्थन मिला। प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि केंद्र सरकार की नीतियों ने स्थानीय पर्यावरण, जल संसाधन और भू–राजनीतिक हितों को नजरअंदाज किया है।

वहीं, केंद्रीय सूत्रों का दावा है कि वांगचुक की संस्था SECMOL और अन्य संबद्ध संस्थाओं ने FCRA (Foreign Contribution Regulation Act) के नियमों का उल्लंघन किया है: कुछ बैंक खातों का विवरण सार्वजनिक नहीं किया गया, विदेशी चंदे में अस्वीकृत लेन-देन पाए गए और धन को निजी कंपनियों में स्थानांतरित करने की प्रवृत्ति देखी गई। विशेष तौर पर यह आरोप है कि HIAL (Himalayan Institute of Alternatives) को विदेशी फंडिंग मिली, जिन्हें निजी संस्था “Sheshyon Innovations Pvt Ltd.” में ट्रांसफर किया गया। कहा जा रहा है कि वांगचुक के निजी खातों में भी कई लेन-देन ऐसे पाए गए हैं, जो सही तरीके से घोषित नहीं किए गए।

इन आरोपों के चलते, गृह मंत्रालय ने वांगचुक की संस्था का FCRA पंजीकरण रद्द कर दिया है, और कहा जा रहा है कि जल्द ही प्रवर्तन निदेशालय (ED) उनके खिलाफ गहन जांच शुरू कर सकती है। इस आर्थिक मामलों की जांच के दायरे में विदेशी चंदों की वापसी, फर्जी व्यय विवरण, न चुकाए गए कर और मनी लॉन्ड्रिंग की आशंका शामिल हो सकती है।

इस पूरे मामले ने लद्दाख के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य को नया मोड़ दिया है। प्रदर्शन कर रहे युवा और छात्र यह कहना चाहते हैं कि वांगचुक का आंदोलन सिर्फ एक नेतृत्‍व और पर्यावरणीय एजेंडा नहीं रहा, बल्कि राजनीतिक और निजी लाभ से जुड़ा हो सकता है। दूसरी ओर, सरकार और सुरक्षा एजेंसियाँ इसे कानून और व्यवस्था का मसला मान रही हैं। इस घटनाक्रम का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि निर्णायक जांच और निष्पक्ष राजनीतिक संवाद कैसे आगे बढ़ते हैं।

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