
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार, 30 जुलाई 2025 को एक बड़ा बयान देते हुए खुलासा किया कि अमेरिका और पाकिस्तान के बीच एक रणनीतिक तेल समझौता हुआ है। इस समझौते के तहत, अमेरिका पाकिस्तान के ‘विशाल तेल भंडार’ को विकसित करने में सहयोग करेगा। इस ऐलान ने न सिर्फ वैश्विक ऊर्जा बाज़ारों का ध्यान खींचा है, बल्कि दक्षिण एशिया की भू-राजनीतिक स्थिति को भी नया मोड़ दिया है।
क्या कहा ट्रंप ने?
वॉशिंगटन में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ट्रंप ने कहा:
“हमने पाकिस्तान देश के साथ एक समझौता किया है, जिसमें हम उनके विशाल तेल भंडार का विकास करेंगे। हमारे पास कुछ बेहतरीन अमेरिकी ऊर्जा कंपनियाँ हैं, और हम उनमें से एक को इस परियोजना के लिए चयनित करेंगे।”
उन्होंने आगे चौंकाने वाली बात कही:
“कौन जानता है, शायद वे एक दिन भारत को भी तेल बेचने लगें।”
पाकिस्तान की भूमिका में बदलाव?
इस बयान को कई विशेषज्ञों ने पाकिस्तान की वैश्विक भूमिका में एक बड़े बदलाव के रूप में देखा है। अब तक पाकिस्तान ऊर्जा आयातक देश रहा है, लेकिन ट्रंप के इस ऐलान से साफ है कि अमेरिका उसे एक निर्यातक देश के तौर पर विकसित करने की दिशा में कदम उठा रहा है।
भारत के लिए यह क्या मायने रखता है?
ट्रंप के इस बयान का एक और दिलचस्प पहलू यह है कि कुछ ही घंटे पहले उन्होंने भारत से आने वाले वस्त्र, फार्मा और स्टील पर 25% टैरिफ लगाने की घोषणा की थी। साथ ही रूस से भारत की डील्स पर नाराज़गी जताते हुए अतिरिक्त दंडात्मक शुल्क (punitive tariffs) भी जोड़े गए हैं। यह दोनों घटनाएं मिलकर भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों पर गंभीर असर डाल सकती हैं।
डिप्लोमैटिक दबाव की रणनीति?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप एक रणनीतिक खेल खेल रहे हैं — एक ओर पाकिस्तान के साथ साझेदारी को बढ़ावा देकर भारत पर दबाव बनाना, और दूसरी ओर भारत को वार्ता की मेज पर मजबूर करना। उन्होंने बयान में यह भी कहा कि भारत के साथ बातचीत अभी जारी है और इस सप्ताह के अंत तक “कोई समाधान” सामने आ सकता है।
पाकिस्तान की प्रतिक्रिया
पाकिस्तान सरकार ने इस समझौते का स्वागत किया है और इसे “देश के लिए ऐतिहासिक आर्थिक अवसर” बताया है। ऊर्जा मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार, यह समझौता सिंध और बलूचिस्तान क्षेत्रों में तेल खोज और उत्पादन से जुड़ा है, जहाँ अब तक व्यावसायिक स्तर पर खनन नहीं हो सका था।
भारत की प्रतिक्रिया का इंतज़ार
भारत सरकार की ओर से अभी तक इस मसले पर कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन विदेश मंत्रालय और ऊर्जा मंत्रालय स्थिति पर नज़र बनाए हुए हैं। कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, दिल्ली में उच्च स्तरीय समीक्षा बैठक भी बुलाई गई है।