नाग पंचमी, सावन मास की शुक्ल पक्ष पंचमी (29 जुलाई 2025) को मनाई जाने वाली एक प्राचीन हिंदू, जैन और बौद्ध त्योहार है, जब नाग देवताओं—विशेषकर कोबरा जैसी साँप-प्रतिमाओं या जीवित सांपों—की पूजा की जाती है ।
इस पर्व का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व कई स्तरों पर जुड़ा है:
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महाभारत की कथा के अनुसार, जब राजा जनमेजय ने सर्पदंश के बदले सर्प यज्ञ करवाया था, तब आस्तिक मुनि ने इसका अंत किया था। उस दिन से इस पंचमी तिथि को नाग पंचमी के रूप में मनाया जाता है।
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प्राचीन भारतीय सभ्यताओं, जैसे सिंधु घाटी, में सांपों को शक्ति, जल, और पाताल से जुड़ा दिव्य प्रतीक माना गया है; नाग पूजन जीव, मिट्टी और पानी के प्रति सम्मान की भावना जगाता है।
पूजा-पद्धति और रिवाज:
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श्रद्धालु मिट्टी, गलीचे या चित्र से सांप की आकृति बनाकर उसे दूध, फूल, खीर, हल्दी, कुमकुम, दूब आदि से पूजते हैं। कुछ क्षेत्रों में सांप को दूध पिलाना भी प्रचलित है, हालांकि यह व्यवहार पशु-अधिकार समूहों द्वारा संदेहास्पद माना जाता है ।
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लोग नाग देवता की मूर्ति या चित्र को स्नान और दूध से अभिषेक करके पूजा करते हैं, जिसकी वजह से परिवार की रक्षा, समृद्धि और रोग-मुक्ति की कामना की जाती है ।
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कई स्थानों पर सांप मंदिर जैसे नाग वासुकी मंदिर में विशेष प्रार्थना अर्चना की जाती है जहाँ नाग देवता को सम्मानित किया जाता है ।
आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण:
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ज्योतिष शास्त्र में राहु और केतु को सांप-प्रतीक के रूप में देखा जाता है, इसलिए नाग पंचमी पर विशेष मंत्र उच्चारण जैसे “सर्पेभ्यो नमः” आदि ऊर्जा बैलेंस और आर्थिक लाभ के लिए देखे जाते हैं ।
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बारिश के मौसम में सर्प की स्थिति भयावह होती है—भरपूर वर्षा से बिल भर जाते हैं जिससे सांप मानवीय क्षेत्र में आते हैं। पूजा के माध्यम से यह संदेश मिलता है कि सर्पों को नुकसान न पहुंचाए और प्राकृतिक संतुलन बनाए रखें ।
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नाग पंचमी न केवल धार्मिक पूजन बल्कि जैव विविधता संरक्षण और संतुलित सह-अस्तित्व की शिक्षा भी देती है I