
दिल्ली-के लाल किला मैदान में आयोजित होने जा रही लव-कुश रामलीला की भूमिका-वितरण को लेकर एक नया विवाद खड़ा हो गया है। अभिनेत्री और मॉडल पूनम पांडे को ‘मन्दोदरी’ की भूमिका देने के फैसले पर विश्व हिंदू परिषद (VHP) सहित कुछ सगठनों ने आपत्ति जताई है। VHP ने इस भूमिका के चयन के समय अभिनेत्री के पिछले विवादित व्यवहार और सार्वजनिक छवि का ज़िक्र करते हुए कहा कि रामलीला जैसे धार्मिक-सांस्कृतिक मंच पर कलाकारों का चयन सोच-विचार और संवेदनशीलता के आधार पर होना चाहिए।
इस विवाद के बीच रामलीला कमेटी और पूनम पांडे ने सहमति से अलग रुख अपनाया है — उन्होंने सोशल मीडिया पर एक वीडियो जारी किया है जिसमें पूनम ने अपनी भावनाएँ स्पष्ट की हैं और कहा है कि उन्हें मन्दोदरी का किरदार निभाने का अवसर मिला है, जिस पर वह “बहुत उत्साहित” और “बहुत खुश” हैं।
वीडियो में पूनम पांडे ने यह भी उल्लेख किया है कि मन्दोदरी की भूमिका उनके लिए केवल एक अभिनय भूमिका नहीं बल्कि एक महत्वाकांक्षी और धार्मिक भावनाओं के साथ जुड़ी भूमिका है, क्योंकि मन्दोदरी रावण की पत्नी थीं और रामायण में उनका स्थान केवल “रावण की पत्नी” के रूप में नहीं बल्कि रावण के व्यवहार और चरित्र परिवर्तन की प्रक्रिया में एक तर्क-वित्तर्क की भूमिका में देखा जाता है।
इस भूमिका के लिए तैयार होने के सिलसिले में, पूनम पांडे ने नवरात्रि के मौके पर नौ दिन उपवास रखने का संकल्प लिया है। उनकी इस पहल का उद्देश्य यह है कि तन-मन दोनों शुद्ध बने रहें, ताकि वे इस किरदार को “खूबसूरती से” निभा सकें। वीडियो के अंत में उन्होंने “जय श्री राम” का नारा भी लगाया, जो उनके दृष्टिकोण और भूमिका स्वीकार्यता की पुष्टि करता है।
रामलीला कमेटी ने साफ कर दिया है कि विरोध और आलोचनाएँ स्वाभाविक हैं, मगर उनका मानना है कि अभिनय में अतीत के किसी कलाकार के व्यवहार को पूरी तरह से भविष्य की भूमिका को नकारने का कारण नहीं बनाया जाना चाहिए। अर्जुन कुमार, रामलीला कमेटी के अध्यक्ष, ने कहा है कि मंच इस प्रकार का है कि यहाँ किसी को भी अपनी भूमिका से सीखने और सामाजिक-सांस्कृतिक सकारात्मक बदलाव की संभावनाएँ होती हैं।
इस पूरे घटनाक्रम में यह देखा जा रहा है कि रामलीला जैसे पारंपरिक और धार्मिक आयोजन में कलाकार चयन से जुड़ी संवेदनाएँ और भूमिका की स्वीकार्यता दोनों ही महत्वपूर्ण हो गई हैं। इस तरह की चर्चाएँ यह इंगित करती हैं कि सार्वजनिक मंचों पर कलाकारों की निजी छवि, उनका इतिहास और जनता की भावनाएँ कितनी भूमिका निभाती हैं भूमिका देने या न देने के निर्णय में।