अमेरिका द्वारा हाल ही में बढ़ाए गए टैरिफ और व्यापारिक दबाव के बीच भारत ने अपनी कूटनीतिक गतिविधियों में तेजी ला दी है। आने वाले सप्ताह में भारत दो अहम उच्च स्तरीय दौरों की मेजबानी और भागीदारी करने जा रहा है, जो वैश्विक राजनीति में उसकी बहुआयामी रणनीति को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं।
पहला बड़ा कदम 18 अगस्त को उठाया जाएगा, जब चीन के विदेश मंत्री वांग यी नई दिल्ली पहुंचेंगे। वांग की यह यात्रा भारत-चीन सीमा विवाद को लेकर जारी विशेष प्रतिनिधि वार्ता को आगे बढ़ाने के लिए अहम मानी जा रही है। उनकी मुलाकात राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल से होगी, जिसमें वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर तनाव कम करने, सीमाई क्षेत्रों में सेना की तैनाती घटाने और द्विपक्षीय संवाद को मजबूत करने पर चर्चा होगी। यह पहल पिछले वर्ष कज़ान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात के दौरान सहमति बने रोडमैप का हिस्सा है।
इसके कुछ ही दिन बाद, 21 अगस्त को विदेश मंत्री एस जयशंकर रूस की राजधानी मॉस्को के दौरे पर जाएंगे। वहां वे अपने रूसी समकक्ष सर्गेई लावरोव के साथ द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर बातचीत करेंगे। चर्चा में ऊर्जा सहयोग, रक्षा साझेदारी, व्यापार बढ़ोतरी, और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के संभावित भारत दौरे की तैयारियां भी शामिल होंगी। इस यात्रा को भारत-रूस संबंधों को नई दिशा देने और मौजूदा वैश्विक हालात में संतुलन बनाने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।
इन दोनों दौरों का समय खास है, क्योंकि अमेरिका के साथ भारत के व्यापारिक रिश्तों में तनाव है। डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने हाल में भारत के कई निर्यात उत्पादों पर भारी टैरिफ बढ़ा दिए हैं, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ा है। ऐसे में, रूस और चीन जैसे प्रमुख साझेदारों के साथ संबंधों को मजबूत करना भारत के लिए सामरिक और आर्थिक दोनों दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हो गया है।
इसके अलावा, चीन और रूस दोनों ब्रिक्स (BRICS) और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) जैसे बहुपक्षीय मंचों के अहम सदस्य हैं। भारत की कोशिश है कि इन मंचों के जरिए वैश्विक दक्षिण (Global South) के हितों की रक्षा के साथ-साथ बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में अपनी भूमिका और प्रभाव को बढ़ाया जाए।
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह कूटनीतिक सक्रियता भारत की “संतुलित विदेश नीति” की मिसाल है। अमेरिका, यूरोप, रूस और चीन—सभी से संबंध बनाए रखना और किसी एक ध्रुव पर अत्यधिक निर्भर न होना भारत की दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा है। आने वाले हफ्तों में इन बैठकों के नतीजे से यह स्पष्ट होगा कि भारत किस तरह बदलते वैश्विक समीकरणों में अपनी स्थिति को मजबूत करता है।