न्यायिक आदेश के अनुसार दिल्ली-NCR से आवारा कुत्तों को शेल्टर में ले जाया जाना चाहिए, मगर पशु अधिकार कार्यकर्ता और पूर्व सांसद मेनका गांधी ने इस आदेश को लागू करना “नामुमकिन” करार दिया है। उन्होंने कहा कि दिल्ली में कोई शेल्टर नहीं है और ऐसे तीन लाख कुत्तों के लिए पर्याप्त जगह और संसाधन जुटाना असंभव है।
उन्होंने इसको ‘पाउंड’ नाम देने की ओर इशारा करते हुए बताया कि एक शेल्टर बनाने में 4–5 करोड़ रुपये लगते हैं और तीन लाख कुत्तों के लिए लगभग 3,000 पाउंड की जरूरत होगी।
इसके लिए ऐसी जमीन तलाशना पड़ेगी जहाँ कोई आवासीय क्षेत्र न हो, क्योंकि कॉलोनियों जैसे स्थानों में शेल्टर बनाना सम्भव नहीं है।
मेनका गांधी का यह भी कहना था कि गंदगी और देखभाल के लिए रोजाना 1.5 लाख लोगों को रखना पड़ेगा—वॉचमैन, खाना बनाने वाले स्टाफ आदि सहित। क्या सरकार इतने खर्च को प्रतिदिन वहन करने को तैयार है, यह एक बड़ा सवाल है।
उन्होंने यह भी चेताया कि अगर सारे आवारा कुत्तों को पकड़ लिया गया तो दिल्ली में बाहर से कुत्ते आने लगेंगे, और बगीचों में बंदरों की संख्या बढ़ जाएगी। इसका उदाहरण पेरिस का 1880 का समय दिया, जब वहां सभी कुत्तों और बिल्लियों को मारने के बाद चूहों का आतंक बढ़ गया और बाद में उन्हें पुन: कुत्ते-बिल्ली लाने पड़े।
उनका निष्कर्ष रहा कि यह फैसला किसी राजा की तरह हुंकार भरने जैसा है—“जैसे राजा कहता है, वैसा निर्णय”।