
आरती साठे की बॉम्बे हाई कोर्ट जज पद के लिए सिफारिश पर उठा राजनीतिक विवाद
सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने 28 जुलाई को बॉम्बे उच्च न्यायालय के एक अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में वरिष्ठ अधिवक्ता आरती अरुण साठे की सिफारिश की है। हालांकि उनकी नियुक्ति अभी तक केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित नहीं की गई है। इस निर्णय के बाद महाराष्ट्र में विपक्ष ने उनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि को लेकर तीखी प्रतिक्रिया दी है।
आरती साठे पहले महाराष्ट्र भाजपा की प्रवक्ता थीं और उन्होंने फरवरी 2023 में पद संभाला था। जनवरी 2024 में उन्होंने सभी राजनीतिक पदों और पार्टी सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया था। भाजपा का दावा है कि उनकी नियुक्ति मात्र योग्यता के आधार पर की गई है और वे उस समय तक पार्टी से पूरी तरह अलग हो चुकी थीं।
विपक्ष, विशेषकर राष्ट्रीय कॉंग्रेस पार्टी (Sharad Pawar गुट) के विधायक रोहित पवार ने सवाल उठाया है कि किस तरह एक पूर्व भाजपा प्रवक्ता को जज पद पर नियुक्त किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका का निष्पक्ष होना आवश्यक है और राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति की नियुक्ति लोकतंत्र को कमजोर कर सकती है।
पूर्व न्यायाधीश B G Kolse‑Patil ने भी सवाल उठाया कि कोर्ट को भाजपा के दबाव में नहीं आना चाहिए। उन्होंने मांग की कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम इस फैसले पर पुनर्विचार करे।
भाजपा ने इन आरोपों को निराधार बताया। पार्टी के प्रवक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि साठे ने लगभग डेढ़ साल पहले पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया था, और यह नियुक्ति न्यायिक प्रक्रिया के तहत की जा रही है, जैसा कि पहले कांग्रेस शासित सरकारों के दौरान भी होता रहा है।
अधिवक्ता के रूप में आरती साठे का अनुभव लगभग 20 वर्षों का है। वह प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर, SEBI, SAT, कस्टम्स एवं वैवाहिक मामलों से जुड़ी कानूनी कामकाज में विशेषज्ञ मानी जाती हैं।
यह मामला न्यायिक स्वतंत्रता, निष्पक्षता और संवैधानिक अधिकारों को चुनौती देने वाला मामला बन गया है, जिसे संसद में भी उठाया जा चुका है। कांग्रेस सांसदों ने इसे लोकतंत्र के लिए खतरनाक बताया है और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से हस्तक्षेप की मांग की गई है।