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“अफगानिस्तान–पाकिस्तान झड़पों के बाद 48 घंटे की युद्धविराम की घोषणा — ड्यूरेंड लाइन विवाद और दोनों पक्षों के आरोप-प्रत्यारोप”

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अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच सीमा पर जारी हुई तीव्र लड़ाइयों के बीच दोनों पक्षों ने 48 घंटे का युद्धविराम लागू करने पर सहमति जताई है। यह संघर्ष दोनों देशों के बीच अब तक की सबसे गंभीर झड़पों में से एक माना जा रहा है, जिसमें हाल की रिपोर्टों के अनुसार कई नागरिकों और सैनिकों की जान गई है।

विवाद की शुरुआत और उग्र रूप

लड़ाइयाँ ड्यूरेंड लाइन (Durand Line) के पास तल्‍वारा हुईं, जिसे पाकिस्तान और अफगानिस्तान अलग-अलग दृष्टिकोण से देखते हैं — अफगानिस्तान इसे अंतरराष्ट्रीय सीमा नहीं मानता। पाकिस्तान ने आरोप लगाया कि अफगानिस्‍तान की धरती पर बसे टीटीपी (Tehreek-i-Taliban Pakistan) जैसे आतंकी समूह पाकिस्तानी क्षेत्रों में हमले कर रहे हैं, और इसलिए उसने आक्रमण किया। वहीं, अफगानिस्तान के तालिबान सरकार ने इन आरोपों को खारिज किया और कहा कि पाकिस्तान ने उनके क्षेत्र में वायु और जमीन से अवैध हस्तक्षेप किया।

घटना के दौरान पाकिस्तान की वायु सेना और ड्रोन हमले भी दर्ज किए गए, और अफगानिस्तान की ओर से सीमा पोस्टों पर तोड़फोड़ व हमला किया गया। संघर्ष के चलते कम से कम 18 लोग मारे गए और 360 से अधिक घायल हुए हैं, संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में यह आँकड़ा सामने आया है।

युद्धविराम की घोषणा और शर्तें

जैसे ही हालात और बिगड़ने लगे, दोनों देश वार्ता की ओर बढ़े। पाकिस्तान की ओर से कहा गया कि यह युद्धविराम सुबह 6 बजे (स्थानीय समय) से शुरू होगा और 48 घंटे तक लागू रहेगा। वहीं तालिबान का पक्ष है कि उन्होंने “समझौते और आपसी सहमति” से यह विराम स्वीकार किया है और इसे अनिश्चित अवधि तक जारी रखने का इरादा जताया है, बशर्ते पाकिस्तान इसे भंग न करे। अफगान सेना को निर्देश दिए गए हैं कि वे इस अवधि के दौरान संघर्ष न बढ़ाएं, लेकिन यदि पाकिस्तान ने विराम उल्लंघन किया तो जवाब दिया जाएगा।

राजनीतिक और क्षेत्रीय प्रभाव

यह घटना इस बात की पुष्टि करती है कि तालिबान और पाकिस्तान के बीच संबंध अब “दोस्ताना” नहीं रहे — एक समय पाकिस्तान तालिबान का समर्थक और संरक्षक रहा है। लेकिन अब तालिबान ने अधिक राष्ट्रीय और स्वायत्त पहचान अपनाई है, और टीटीपी जैसे समूहों के प्रति उसकी नरमी ने पाकिस्तान को नाराज किया है।

यह तनाव न केवल इन दोनों देशों तक सीमित नहीं रहेगा — आस पास के क्षेत्रीय देशों और वैश्विक शक्तियों की निगाह इस पर टिक गई है। युद्धविराम के बाद भी यदि हमले जारी रहते हैं तो यह पूरे दक्षिण एशिया में अस्थिरता को बढ़ा सकता है।

आगे की चुनौतियाँ और निगरानी

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