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ढाका सीट से AIMIM ने उतारा हिंदू राजपूत उम्मीदवार

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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के मद्देनज़र एआईएमआईएम (AIMIM) ने एक चौंकाने वाला राजनीतिक कदम उठाया है — उसने ढाका विधानसभा क्षेत्र (पूर्वी चंपारण) से हिंदू राजपूत नेता राणा रणजीत सिंह को अपना प्रत्याशी घोषित किया है। यह कदम एआईएमआईएम की रणनीति में बदलाव और सामाजिक-राजनीतिक समीकरणों को लेकर उसके नए इरादों का संकेत माना जा रहा है। (Navbharat Times)

राणा रणजीत सिंह ने नामांकन के दिन सिर पर टोपी और माथे पर तिलक लगाकर रैली में शामिल होकर अपनी राजनीतिक छवि को एक नया आयाम दिया है — इस दृश्य ने पार्टी की छवि “सिर्फ मुस्लिम पार्टी” से निकलने की कोशिश की दिशा में सवाल खड़े कर दिए हैं।

AIMIM, जो लंबे समय से मुस्लिम सुदृढ हिस्सों में सक्रिय रही है, इस बार एक ऐसे उम्मीदवार को मैदान में उतार रही है जो धर्म और जाति दोनों से उस क्षेत्र की पारंपरिक धारणाओं को चुनौती दे सकता है। इस तरह का उम्मीदवार चयन यह संकेत देता है कि पार्टी अब सिर्फ धार्मिक आधार पर वोटिंग ब्लॉक बनाने का अवलंब नहीं करना चाहती, बल्कि व्यापक सामाजिक गठजोड़ का रास्ता अपनाना चाहती है।

राजनीतिक पृष्ठभूमि देखें तो, राणा रणजीत पहले लोकसभा चुनाव 2024 में शिवहर निर्वाचन क्षेत्र से AIMIM के उम्मीदवार रह चुके हैं। हालांकि उन्हें सफलता नहीं मिली, लेकिन इस कदम से उनकी राजनीतिक पहचान और संगठन में सक्रियता जगज़ाहिर है।

ढाका सीट पर वर्तमान विधायक और इस क्षेत्र में भाजपा के प्रभावी उम्मीदवार पवन कुमार जैसवाल हैं। उन्होंने पहले भी यही सीट जीती है और उनकी सामाजिक पकड़ इस इलाके में मजबूत मानी जाती है। इसलिए, राणा रणजीत की मेहनत और AIMIM की प्रचार रणनीति इस मुकाबले को दिलचस्प बनाएगी।

इस कदम के राजनीतिक मायने कई स्तरों पर देखे जा सकते हैं:

  • रणनीतिक विस्तार प्रयास: AIMIM इस बार सीमांचल से बाहर निकलने की कोशिश कर रही है। उसका मकसद यह दिखाना है कि वह सिर्फ एक संकीर्ण धार्मिक पार्टी नहीं है, बल्कि बहुवर्गीय और समावेशी राजनीति की ओर अग्रसर है।

  • मत विभाजन पर प्रहार: विपक्ष और अन्य दल AIMIM पर “वोट कटवा” होने का आरोप लगाते रहे हैं। इस तरह का उम्मीदवार उतार कर AIMIM यह तर्क देना चाहती है कि वह अल्पसंख्यक वोट तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि सामान्य वर्ग में भी अपनी पैठ बनाएगी।

  • संभावित गठबंधन की भूमिका: AIMIM ने पहले से ही बिहार में कई सीटों पर चुनाव लड़ने की योजना बना रखी है और वह महागठबंधन (Grand Alliance) के साथ तालमेल की कोशिशों में है। इस उम्मीदवारी से उसके गठबंधन प्रस्तावों में मजबूती आ सकती है।

हालाँकि चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। राणा रणजीत को स्थानीय जातिगत समीकरण, क्षेत्रीय मतदाताओं की अपेक्षाएँ और बड़े दलों की सत्ता संसाधनों का सामना करना होगा। साथ ही, AIMIM को यह साबित करना होगा कि यह सिर्फ घोषणात्मक कदम नहीं, बल्कि स्थानीय स्तर पर सशक्त संगठन और धरातल पर जुड़ाव भी बना सकती है।

आने वाले हफ्तों में यह देखना रोचक होगा कि इस दावे के पीछे AIMIM की चुनावी रणनीति कितनी असरदार सिद्ध होती है — क्या यह कदम ढाका और आसपास के इलाकों में कांग्रेस, RJD या भाजपा के वोट छीन सकेगा, या फिर यह एक ऐसे प्रयोग के रूप में याद रहेगा जिसने अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरा।

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