
लोकसभा में चल रही चुनाव सुधार (SIR) बहस के दौरान, गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि “वोट चोरी” (vote theft) किसी नई समस्या का नाम नहीं है — उनका दावा है कि देश में पहली वोट चोरी आज नहीं, बल्कि आज़ादी के तुरंत बाद हुई थी। उन्होंने सदन में कहा कि जब पहली बार प्रधानमंत्री चुना गया था, उस समय Sardar Vallabhbhai Patel को 28 वोट मिले, वहीं Nehru को सिर्फ 2 वोट — फिर भी Nehru प्रधानमंत्री बन गए; शाह ने इसे एक मज़बूत उदाहरण बताया कि वोटर-रोल एवं मतदान से जुड़ी गड़बड़ियाँ बदलापुरानी नहीं।
शाह ने यह भी आरोप लगाया कि वोट चोरी की लहर बाद में भी चली — उन्होंने पुराने समय के उदाहरण दिए, जैसे कि उस समय (1971) जब कोर्ट ने कहा था कि Indira Gandhi की चुनाव जीत प्रक्रिया वैध नहीं थी; उन्होंने इसे अपना “दूसरा वोट चोरी” बताया। इसके अलावा, उन्होंने कहा कि वर्तमान में Sonia Gandhi से जुड़े वोटर-नामांकन केस भी इसी श्रेणी का “तीसरा वोट चोरी” है।
उनका यह भी कहना है कि जब कांग्रेस या विपक्ष जीतती थी, तो किसी को चुनाव प्रणाली, वोटर लिस्ट या मशीन (EVM) पर सवाल नहीं उठाने पड़ते थे — लेकिन जब हार होती है, EVM या वोटर-लिस्ट पर दोष दे दिया जाता है। शाह ने विपक्ष की इस दलील को अस्वीकार करते हुए कहा कि लोकतंत्र में “दोहरा मापदंड” स्वीकार नहीं होगा।
उनकी यह टिप्पणी संसद में तीखी प्रतिक्रिया का कारण बनी है। विपक्ष ने शाह के दावों को विवादित करार दिया है, और कहा है कि ऐसी दलीलों से इतिहास को तोड़ा–मरोड़ा जा रहा है। लेकिन शाह का कहना है कि सवाल सिर्फ वर्तमान वोटर-लिस्ट या EVM का नहीं — बल्कि लोकतंत्र की बुनियाद का है।



