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“अयोध्या में धर्मध्वज फहराने के बाद नया अध्याय — प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा ‘भारत के कण-कण में राम’”

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आज (25 नवंबर 2025) वि.सं. में एक महत्वपूर्ण क्षण के रूप में दर्ज हुआ जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के अयोध्या स्थित राम मंदिर के शिखर पर भगवा धर्मध्वज फहराया। यह अनुष्ठान अभिजीत मुहूर्त में संपन्न हुआ था, जिसमें वैदिक मंत्रोच्चार के बीच यह ध्वज शिखर पर स्थापित किया गया।

इस मौके पर प्रधानमंत्री ने संबोधन देते हुए कहा कि “आज अयोध्या नगरी भारत की सांस्कृतिक चेतना के एक और पल की साक्षी बन रही है… आज संपूर्ण भारत, संपूर्ण विश्व राममय है।” उन्होंने इसे “सदियों के घाव भरने”, “सदियों का संकल्प आज सिद्धि को प्राप्त हो रहा है” जैसे भावपूर्ण शब्दों में वर्णित किया।

कार्यक्रम की शुरुआत सुबह हुई जब मोदी अयोध्या के महर्षि वाल्मीकि एयरपोर्ट पहुंचे, उसके बाद उन्होंने हेलीकॉप्टर से साकेत महाविद्यालय और फिर सड़क मार्ग से रोड-शो के रूप में सप्त मंदिर पहुंचे। वहाँ उन्होंने पूजा-अर्चना की और फिर राम मंदिर के गर्भगृह व प्रथम तल पर बने राम दरबार में दर्शन एवं आरती की।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस अवसर को 140 कোरड़ भारतीयों की आस्था का प्रतीक बताते हुए कहा कि “यह संकल्प का कोई विकल्प नहीं”। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि “जैसा सपना देखा था, उससे भी शुभकर यह मंदिर बन गया है”।

धर्मध्वज के आरोहण से पहले इस मौके के लिए मंदिर परिसर को भव्य रूप से सजाया गया था। आम श्रद्धालुओं के दर्शन आज नहीं हो पाए क्योंकि प्रशासन ने सुरक्षा व कार्यक्रम की प्राथमिकताओं के कारण दर्शन बंद किया था।

विश्लेषण करें तो यह घटना मात्र अनुष्ठान नहीं बल्कि एक प्रतीकात्मक शक्ति को दर्शाती है — एक ऐसा क्षण जब ऐतिहासिक आस्था, सांस्कृतिक पुनरुत्थान और राजनीति का संयोजन सामने आया है। इस धार्मिक-सांस्कृतिक घटना का संदेश यह है कि मंदिर केवल एक निर्माण नहीं बल्कि एक नए सामाजिक-सांस्कृतिक युग के आरंभ का प्रतीक हो सकता है।

इस कार्यक्रम का राजनीतिक-प्रकाश भी कम नहीं। पीएम मोदी द्वारा ध्वज फहराना और इसे “भारत के कण-कण में राम” कहकर संबोधित करना, यह संकेत देता है कि राज्य-राजनीति और राजनीतिक नेतृत्व इस प्रकार की धार्मिक-सांस्कृतिक प्रतीकों के माध्यम से जनता के साथ जुड़ने की रणनीति को आगे ले जा रहे हैं।

साथ ही, अयोध्या में इस कार्यक्रम का समय चुनना, अर्थात् विवाह-पंचमी के दिन एवं अभिजीत मुहूर्त में ध्वजारोहण करना, यह दिखाता है कि आयोजन को धार्मिक-कालानुसार भी पवित्रता देने की कोशिश की गई है। इतना ही नहीं — इस दौरान आम श्रद्धालुओं का दर्शन बंद होना, सुरक्षा व्यवस्था की कड़ी तैयारी, कार्यक्रम का व्यापक मीडिया कवरेज — ये सब संकेत हैं कि यह घटना मात्र धार्मिक समारोह नहीं बल्कि एक सार्वजनिक कार्यक्रम की तरह आयोजित की गई थी।

आगे की चुनौतियाँ भी स्पष्ट हैं: इस प्रतीक-विश्वासी अपील को किस प्रकार संरचनात्मक विकास, सामाजिक समरसता एवं आर्थिक-सामाजिक प्रगति से जोड़ा जाए, यह वास्तविक मापदंड होगा। मंदिर निर्माण का जो भावनात्मक उछाल है, उसे यदि स्थानीय विकास, सेवा-काम और सामाजिक समावेशीयता के साथ जोड़ा जाए तो कार्यक्रम केवल श्राद्ध-अनुष्ठान तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि एक व्यापक परिवर्तन-यानी संकेत बनेगा।

संक्षिप्त में, आज अयोध्या में हुआ धर्मध्वज फहराना एक सांस्कृतिक-राजनीतिक क्षण रहा है, जिसमें आस्था, प्रतीकवाद, राजनीतिक संदेश और सामाजिक-लक्ष्य सभी शामिल नजर आए। आने वाले दिनों में यह देखना होगा कि इस प्रतीक को कितनी स्थिरता, कितनी वास्तविकता और कितनी प्रभावशीलता के साथ आगे ले जाया जाता है।

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