
बिहार चुनाव में Indian National Congress-Rashtriya Janata Dal गठबंधन सुलझाने की ओर
बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र विपक्षी गठबंधन Mahagathbandhan के भीतर सीट-बंटवारे और प्रत्याशी विवादों ने तापमान बढ़ा दिया है। इस पृष्ठभूमि में कांग्रेस ने वरिष्ठ नेता Ashok Gehlot को बिहार की राजधानी पटना रवाना किया है, ताकि RJD प्रमुख Tejashwi Yadav के साथ एक अहम बैठक कर इन मतभेदों को कम किया जा सके।
ध्यान रहे कि बिहार की 243 सदस्यीय विधान सभा के लिए चुनाव दो चरणों में होंगे—6 नवंबर एवं 11 नवंबर।
गठबंधन के भीतर अब तक कई सीटों पर “मित्र संघर्ष” (friendly fights) की चुनौतियाँ उभर चुकी हैं — यानी कि गठबंधन में शामिल पार्टियों के उम्मीदवारों का एक-दूसरे के खिलाफ मैदान में उतरना।
इस बैठक का उद्देश्य स्पष्ट है:
कांग्रेस-RJD के बीच सीट-बंटवारे पर जारी असमंजस को दूर करना।
गठबंधन के अंदर “मित्र संघर्ष” की संभावना खत्म करना, ताकि वोट विभाजन न हो सके।
मीडिया एवं जनता के सामने एक मजबूत, एकजुट छवि पेश करना, खास-कर जब चुनाव को लेकर माहौल गर्म है।
Gehlot ने पटना में कहा है, “कुछ सीटों पर मित्र-संघर्ष हो सकते हैं, लेकिन प्रक्रिया आगे बढ़ रही है। प्रेस कॉन्फ्रेंस होगी और सारी उलझनें सुलझ जाएँगी।”
वहीं, Tejashwi Yadav ने यह स्पष्ट किया कि “गठबंधन में कोई विवाद नहीं है।”
हालांकि, विश्लेषकों का मानना है कि इस तरह के “मित्र-संघर्ष” को आम माना जाना ठीक नहीं — क्योंकि यदि गठबंधन के भीतर ही मत विभाजित हुए, तो यह सीधे Bharatiya Janata Party-प्रधान एनडीए को फायदा पहुँचा सकता है।
गठबंधन की चुनौतियाँ:
कांग्रेस और RJD ने कुछ सीटों पर उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं, लेकिन पूरे गठबंधन ने अभी तक औपचारिक साझा सूची जारी नहीं की।
मीडिया रिपोर्टों में आ रहा है कि CM चेहरे (Chief Ministerial face) को लेकर भी गठबंधन में असमंजस है।
समय कम है: नामांकन प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और प्रचार-प्रसार की घड़ी आ चुकी है। हर दिन महत्वपूर्ण है।
राजनीतिक मायने:
यदि इस बैठक के बाद कांग्रेस-RJD एकता का स्पष्ट संदेश देते हैं तो बिहार के मतदाताओं के सामने एक संगठित विपक्षी विकल्प दिखेगा। इसके विपरीत, यदि मतभेद खुले तौर पर सामने आए, तो गठबंधन को नुकसान हो सकता है। ऐसे समय में चुनावी रणनीति-मैप, प्रत्याशी चयन, प्रचार-धाराओं का निर्धारण विशेष महत्व धारण करता है।
इसलिए कहा जा सकता है कि यह बैठक सिर्फ एक संवाद नहीं बल्कि बिहार में विपक्षी मोर्चे के लिए एक निर्णायक कदम हो सकती है — जिससे यह तय होगा कि गठबंधन कितने दबदबा के साथ चुनाव मैदान में उतर रहा है।



