
देश-राजनीति में एक बड़ा मोड़ आज सामने आया है जहाँ केंद्रशासित प्रदेश Dadra and Nagar Haveli and Daman and Diu (DNHDD) में हुए स्थानीय निकाय चुनावों में भाजपा ने अभूतपूर्व जीत दर्ज की है। इस प्रदेश की कुल 96 सीटों में से 91 पर Bharatiya Janata Party (भाजपा) ने विजय प्राप्त की है।
इस जीत को भाजपा ने न केवल एक स्थानीय सफलता बल्कि केंद्र और प्रदेश के बीच संबंधों के मजबूत संकेत के रूप में लिया गया है। Narendra Modi ने इस जीत पर पार्टी कार्यकर्ताओं को सोशल-मीडिया पर बधाई दी तथा कहा कि यह हमारी पार्टी के विकास एजेंडे और प्रदेश में हमारे काम की जनता द्वारा स्वीकार्यता का प्रमाण है।
लोकल बॉडीज-चुनावों में भाजपा की यह धमाकेदार सफलता इस प्रकार आयी है: इस केंद्रशासित प्रदेश में जिला-पंचायत, नगर निगम/म्युनिसिपल काउंसिल तथा ग्राम-पंचायत (सरपंच आदि) की कुल-सीटें थीं। भाजपा ने दमन जिले में 16 सीटों में 15 जिला-पंचायत सीटें, म्युनिसिपल काउंसिल में 14-14 आदि जीत लीं; दीव जिले में सभी 8 सीटें भाजपा ने जीतीं; दादरा-नगर-हवेली जिले में भी जिला-पंचायत 26 में से 24 और म्युनिसिपल काउंसिल 15 में से सभी 15 सीटें भाजपा के खाते में गईं।
लेकिन इस जीत के बीच विपक्ष ने चुनौतियाँ भी उठाई हैं। Indian National Congress ने आरोप लगाया है कि उनके लगभग 80 % नामांकन पत्र प्रक्रिया में रद्द कर दिए गए थे, जिससे चुनाव-प्रतियोगिता लगभग खत्म हो गई थी।
विश्लेषण करें तो इस जीत का संकेत कई स्तरों पर देखने लायक है :
पहला, भाजपा की संगठन-शक्ति और स्थानीय-स्तर पर उनकी सक्रियता इस चुनाव में झलकती है। पाँच-छह महीने पहले से तैयारी, चुनावी रणनीति और कार्य-शक्ति की सक्रिय भागीदारी चुनाव परिणाम में दिख रही है।
दूसरा, यह जीत भाजपा के विकास-एजेंडे के समर्थन का प्रमाण है — विशेष रूप से उस केंद्रशासित प्रदेश में जहाँ प्रशासनिक नियंत्रण सीधे केंद्र द्वारा होता है।
तीसरा, विरोध-पक्ष के घेराव एवं नामांकन-रद्दीकरण के आरोप इस प्रक्रिया की पारदर्शिता और लोकतांत्रिक प्रतिस्पर्धा की छवि पर सवाल उठा रहे हैं। यदि नामांकन ही नहीं स्वीकारे गए हों, तो प्रतियोगिता सीमित होती है, और यह लोकतांत्रिक मानदंडों पर चर्चा को उद्धृत करता है।
चौथा, राज्य-स्तरीय तथा केंद्र-स्तरीय राजनीति के बीच की सामरिक लहर को देखा जा सकता है — बिहार जैसे बड़े चुनाव-परिस्थितियों के बीच इस जीत को भाजपा ने एक “गुड न्यूज” के रूप में उठाया है।
आगे क्या देखने योग्य है:
इस जीत के बाद स्थानीय स्तर पर भाजपा को जिम्मेदारियों का सामना करना होगा — अब पद मिले, लेकिन जनता की अपेक्षाएँ भी बढ़ेंगी। विकास-कामों, लोकसुविधाओं तथा स्थानीय प्रशासन के प्रति उम्मीदें बढ़ेंगी।
विपक्ष द्वारा उठाए गए नामांकन-रद्दीकरण के आरोपों की न्यायिक जाँच और राजनीतिक समीक्षाएँ होंगी। यदि इन पर कार्रवाई होती है, तो इसका भविष्य में चुनावी प्रक्रियाओं पर प्रभाव होगा।
इस जीत का असर आगामी विधानसभा/लोकसभा चुनावों पर होगा — किस तरह भाजपा इसे राजनीतिक लाभ में बदलती है, यह रणनीति-भरोसे की बात बनेगी।
संक्षिप्त में, दादरा-नगर-हवेली एवं दमन-दीव में भाजपा की यह 91 में 96 की जीत सिर्फ स्थानीय निकाय चुनाव का परिणाम नहीं है, बल्कि इसके पीछे राजनीतिक-प्रभाव, संगठन-शक्ति, विरोध-पक्ष की चुनौतियाँ तथा लोकतंत्र-प्रक्रिया की बातें भी जुड़ी हुई हैं। आने वाले समय में इसकी समीक्षा अधिक व्यापक रूप से होगी, लेकिन अभी के लिए यह भाजपा के लिए एक स्पष्ट सफ़लता-सन्देश है।



