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“जाति जनगणना पर मोदी सरकार की चौंकाने वाली चाल: विपक्ष की मांग अब सत्ता का एजेंडा?”

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केंद्र सरकार ने अब संकेत दिए हैं कि आगामी जनगणना में जातिगत आंकड़ों को शामिल किया जाएगा, जो भारत की राजनीति में एक बड़ा मोड़ साबित हो सकता है। यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब विपक्ष खासकर कांग्रेस, आरजेडी, जेडीयू और अन्य क्षेत्रीय दल जाति आधारित जनगणना की जोरदार मांग कर रहे थे

इस कदम के कई महत्वपूर्ण पहलू और संभावित प्रभाव सामने आ रहे हैं:


🔹 1. राजनीतिक दबाव और विपक्ष का नैरेटिव

पिछले कुछ वर्षों से राहुल गांधी और कांग्रेस लगातार यह मांग कर रहे थे कि देश में जातिगत आधार पर आंकड़े इकट्ठा किए जाएं ताकि वास्तविक सामाजिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जा सके। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी बिहार में जाति आधारित जनगणना करवाई थी, जिसकी काफी चर्चा हुई।
अब जब केंद्र सरकार खुद इसे आगे बढ़ा रही है, तो विपक्ष इसे अपनी वैचारिक जीत बता रहा है, लेकिन बीजेपी इसे सामाजिक न्याय की दिशा में एक “नैचुरल प्रोग्रेशन” बता रही है।


🔹 2. चुनावी रणनीति और बिहार का प्रभाव

विशेषज्ञों का मानना है कि बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में जातिगत समीकरणों की राजनीति हावी रही है।
2024 के लोकसभा चुनावों के बाद अब सभी पार्टियां 2025 और उसके बाद के विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए OBC, SC/ST और अन्य जातियों को साधने की कोशिश में हैं।
जातिगत आंकड़े एक बड़ा पॉलिटिकल टूल बन सकते हैं, और केंद्र सरकार इसका नियंत्रण अपने पास रखना चाहती है।


🔹 3. सभी धर्मों में जाति की गणना

सरकार द्वारा जारी संकेतों के अनुसार, इस बार जनगणना में मुस्लिम समुदाय समेत सभी धर्मों के लोगों से उनकी जाति की जानकारी ली जाएगी। इससे पहली बार पसमांदा मुस्लिमों और अन्य वंचित समूहों की स्थिति स्पष्ट हो सकेगी, जिससे योजनाओं में अधिक लक्षित हस्तक्षेप किया जा सकेगा।


🔹 4. महिला आरक्षण और सामाजिक नीति निर्माण में उपयोग

2023 में पारित महिला आरक्षण बिल को लागू करने की समयसीमा 2029 तय की गई है। तब तक नई जनगणना और परिसीमन प्रक्रिया जरूरी मानी जा रही है।
जातिगत आंकड़े नीति निर्माताओं को यह तय करने में मदद करेंगे कि किस वर्ग को कितनी भागीदारी मिलनी चाहिए, विशेषकर OBC और अन्य वंचित समुदायों की महिलाओं के संदर्भ में।


🔹 5. विपक्ष की प्रतिक्रिया और सरकार का रुख

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