
चीन और अमेरिका के बीच व्यापार-संघर्ष एक नए मोड़ पर पहुँच गया है, जिसमें Rare Earth (दुर्लभ पृथ्वी तत्वों) के निर्यात प्रतिबंधों को लेकर चीन ने पूरी मजबूती से आत्मरक्षा की पोजीशन ली है। बीजिंग सरकार ने कहा है कि उसके निर्यात नियंत्रण “पूर्ण प्रतिबंध (ban)” नहीं हैं, बल्कि सुरक्षा कारणों और तकनीकी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए नियमबद्ध किए गए हैं। साथ ही उसने चेतावनी दी है कि यदि अमेरिका 100 % शुल्क (tariffs) लगाने की अपनी धमकी के साथ आगे बढ़ता है, तो चीन “संकल्पित कार्रवाई (resolute measures)” से पीछे नहीं हटेगा।
चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि उसने जो नियंत्रण लगाए हैं, वे मुख्यतः सैन्य — “dual use” — प्रयोजनों और संवेदनशील क्षेत्रों को ध्यान में रखते हुए हैं, न कि सामान्य व्यापार को पूरी तरह से बंद करने के लिए। उन नियंत्रणों के तहत ऐसे निर्माण या प्रसंस्करण तकनीकों पर विचार किया जाना है जो रेडियम, चुम्बक और अन्य rare earth-संबंधित उत्पादों में इस्तेमाल होती हैं।
चीन ने यह भी कहा है कि यदि कोई नागरिक या औद्योगिक उपयोगी अनुरोध नियमों का पालन करता हो, तो उसे निर्यात लाइसेंस जारी किया जाएगा — यानी वह “निर्यात नियंत्रण हैं, प्रतिबंध नहीं” — इस तरह के दावे किए हैं।
वहीं, अमेरिका की ओर से 100 % शुल्क लगाने की धमकी ने इस गतिरोध को और तीखा बना दिया है। ट्रंप प्रशासन ने यह कदम चीन की नई निर्यात नीति का जवाब माना है और यह संकेत दिया है कि यदि चीन नियम न बदले, तो अमेरिका व्यापक शुल्कों और अन्य नियंत्रणों के साथ प्रतिकार कर सकता है।
इस विवाद की पृष्ठभूमि में यह तथ्य है कि चीन वैश्विक rare earth प्रसंस्करण में लगभग 90 % हिस्सेदारी रखता है। इसलिए इन तत्वों का नियंत्रण वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं, इलेक्ट्रॉनिक उद्योग, रक्षा उपकरणों और हरित उर्जा क्षेत्रों पर गंभीर प्रभाव डालने की क्षमता रखता है।
विश्लेषकों के अनुसार, चीन की यह रणनीति केवल झूठी नहीं, बल्कि समयबद्ध राजनयिक मोर्चे पर दांव लगाने की चाल हो सकती है। इसे एक छलांग के रूप में देखा जा रहा है ताकि अमेरिका और अन्य देश बातचीत की मेज पर बैठने को विवश हों।
दूसरी ओर, अमेरिकी नीतियों के प्रभाव से वैश्विक बाजारों में बेचैनी बढ़ी है। टेक्नोलॉजी कंपनियाँ, विशेष रूप से वे जो rare earth मैग्नेट, सेमीकंडक्टर एवं अन्य उच्च तकनीक उपकरणों पर निर्भर हैं, वे आपूर्ति बाधाओं के डर से बेचैन हो गई हैं।
इस स्थिति में एक आशंका यह भी है कि प्रस्तावित ट्रम्प–शी जिनपिंग बैठक भी इस तनाव की चपेट में आ सकती है। यही नहीं, यदि यह विवाद और बढ़ता है तो विश्व बाजारों में कच्चे माल की कीमतें, उद्योग निवेश और टेक्नोलॉजी विकास पर असर पड़ेगा।