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भारत बुलडोजर से नहीं, कानून से चलता है

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मॉरीशस में आयोजित Sir Maurice Rault Memorial Lecture 2025 में भारत के मुख्‍य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने एक शक्तिशाली वक्तव्य दिया, जिसमें उन्होंने यह स्पष्ट किया कि भारतीय न्याय व्यवस्था “बुलडोजर न्याय” या त्वरित कार्रवाई की आड में कानून की प्रक्रिया को दरकिनार करने वाली नीतियों से संचालित नहीं होती, बल्कि वह कानून के शासन (Rule of Law) के सिद्धांतों पर आधारित है।

गवई ने अपने भाषण में यह उल्लेख किया कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही एक निर्णय में स्पष्ट कर दिया है कि आरोपियों के आश्रय (घर) को बिना उचित प्रक्रिया के गिराना न केवल संविधान की नींव पर चोट है, बल्कि वह न्यायपालिका, कार्यपालिका और न्यायायनिर्‍वাহী की भूमिकाओं का अवैध सम्मिश्रण भी है — “न्याय, एतिहास और क्रियान्वयन” का कार्य एक ही अंग द्वारा नहीं किया जाना चाहिए।

उन्होंने यह भी कहा कि कानून के शासन का सिद्धांत केवल अदालती आदेशों तक सीमित नहीं है; वह एक नैतिक एवं नैतिक-आधारित ढाँचा है, जो समानता, मानव गरिमा और विविध समाज में न्याय सुनिश्चित करने के लिए शासन प्रणाली को संचालन देता है।

अपने वक्तव्य में उन्होंने महान विभूतियों — महात्मा गांधी और डॉक्टर बी.आर. आंबेडकर — के विचारों का हवाला देते हुए कहा कि भारत में कानून का शासन केवल सिद्धांत नहीं, बल्कि जीवन और शासन की दिशा है।

उल्लेखनीय फैसलों का ज़िक्र करते हुए उन्होंने उन निर्णयों को रेखांकित किया जिन्होंने भारतीय न्यायशास्त्र को संवैधानिक और सामाजिक आयाम दिए हैं — जैसे कि तीन तलाक निषेध, निजता का अधिकार, इलेक्टोरल बॉन्ड्स पर प्रतिबंध, और अवैध भूमि विध्वंस (bulldozer action) के खिलाफ फैसले।

मॉरीशस यात्रा के दौरान, गवई ने यह भरोसा व्यक्त किया कि भारत और मॉरीशस सिर्फ भू-राजनीतिक या आर्थिक साझेदार ही नहीं, बल्कि न्याय और संवैधानिक मूल्यों के प्रति साझा प्रतिबद्धता वाले देश हैं।

इस बयान का समय और संदर्भ दोनों ही महत्वपूर्ण हैं — हाल के वर्षों में कई राज्यों में आरोपियों या उनकी संपत्ति पर बुलडोजर या अन्य सरकारी कार्रवाई की घटनाएँ सुर्खियों में रहीं हैं, जिसे आलोचकों ने “न्याय के बाहर की कार्रवाई” बताया है। गवई का यह संदेश इस तरह की प्रवृत्तियों के खिलाफ एक संवैधानिक चेतावनी स्वरूप भी देखा जा सकता है।

कुल मिलाकर, CJI गवई का यह संदेश न्यायपालिका की स्वतंत्रता, संवैधानिक प्रक्रिया की गरिमा और शासन प्रणाली में शक्ति का संतुलन बनाए रखने की अनिवार्यता पर बल देता है। उन्होंने यह संकेत दिया कि भारत में कोई ऐसा स्थान नहीं है जहाँ कानून की ऊँचाई न पहुँचे — यहाँ कोई “अदृश्य हाथ” नहीं चलता, बल्कि लोकतंत्र, संवैधान्य पथ और न्याय की प्रक्रियाएँ ही सर्वोच्च हैं।

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