चीन और पाकिस्तान के बीच चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) के दूसरे चरण, यानी CPEC 2.0 को लेकर हाल ही में हुई बातचीत ने भारत की रणनीतिक चिंताओं को और तीव्र कर दिया है। इस परियोजना के विस्तार में अब अफगानिस्तान को शामिल करने का प्रस्ताव शामिल है, जिससे क्षेत्रीय भौ-राजनीतिक परिस्थितियाँ और जटिल होती जा रही हैं।
CPEC 2.0 का उद्देश्य केवल दोनों देशों के बीच कनेक्टिविटी और विकास नहीं है, बल्कि यह चीन की बेल्ट एंड रोड पहल (BRI) में रणनीतिक विस्तार का प्रतीक भी है। इसमें विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZs), हरित ऊर्जा, डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर और कृषि तक की योजनाएँ शामिल हैं, जिससे पाकिस्तान की आर्थिक एवं तकनीकी निर्भरता चीन पर और बढ़ जाए।
भारत के लिए यह महत्वपूर्ण है क्योंकि यह गलियारा पाक अधिकृत कश्मीर (Gilgit–Baltistan) से होकर गुजरता है—एक ऐसा क्षेत्र जिस पर भारत अपना दावा करता है। अब अफगानिस्तान तक विस्तार से भारत की रणनीतिक स्थिति कमजोर हो सकती है और चीन-पाकिस्तान सीमा पर दबाव बढ़ सकता है।
भारत ने संसद में अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा है कि किसी तीसरे देश—विशेषकर अफगानिस्तान—का CPEC में शामिल होना पूरी तरह अस्वीकार्य है। इस विषय पर विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत लगातार अपनी आपत्ति सभी संबंधित पक्षों तक पहुँचा चुका है और सभी विकासों पर सतर्क नजर बनाए रखा है।
इसके अलावा, CPEC के तहत ग्वादर जैसे बंदरगाहों और ग्रीनफील्ड इंफ्रास्ट्रक्चर की चीन द्वारा लगातार रणनीतिक निवेश, क्षेत्र में उसका प्रभाव बढ़ाने का संकेत देता है। इससे भारत को सीमाओं पर सैन्य मजबूती बढ़ानी पड़ रही है और उसे चाबहार जैसे विकल्पों की ओर अधिक निवेश करना पड़ रहा है।