
दलाई लामा, तिब्बती बौद्ध धर्म के आध्यात्मिक प्रमुख और निर्वासित सरकार के पूर्व प्रमुख, ने अपने 90वें जन्मदिन के अवसर पर स्पष्ट कर दिया है कि उनका अगला पुनर्जन्म पारंपरिक प्रक्रिया के अनुसार होगा — और केवल उनका अपना कार्यालय, “गदेन फोडरंग ट्रस्ट”, ही इसमें भूमिका निभाएगा। उन्होंने साथ ही कहा है कि उनका उत्तराधिकारी “मुक्त दुनिया” में जन्मेगा, जिससे यह संकेत मिलता है कि चयन प्रक्रिया को चीन से अलग रखा जाएगा
ऐतिहासिक तौर पर, दलाई लामा को करुणा के अवतार (बोधिसत्व) अवलोकितेश्वर के रूप में माना जाता है, और वे गेलुग स्कूल के नेता हैं। वे तिब्बत के 1959 के विद्रोह के बाद भारत आ बसे और तब से धर्मशाला में निर्वासन जीवन व्यतीत कर रहे हैं ।
चीन लंबे समय से दावा करता रहा है कि अगली संतान उनकी सरकार द्वारा अनुमोदित होनी चाहिए, विशेषकर 1995 में चिन श्रद्धेय पंचेन लामा के मामले के बाद। लेकिन दलाई लामा ने साफ कहा कि उनकी संस्था ही चुनाव की वैधता तय करेगी, न कि बीजिंग। इसके अलावा, उन्होंने बताया कि वे 130 वर्ष तक जीने की आशा रखते हैं और अपनी सेवा जारी रखना चाहते हैं।
यह घोषणा न केवल आध्यात्मिक, बल्कि भू‑राजनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि तिब्बती नेतृत्व की अगली पीढ़ी पर चीन, भारत और वैश्विक शक्तियों की नजर है। आने वाले सालों में यह स्पष्ट करेगा कि किस तरह का विभाग और सांस्कृतिक नियंत्रण तिब्बत के भविष्य की धारा तय करेगा।