
पाकिस्तान की आतंकी संगठन Jaish‑e‑Mohammed महिलाओं के लिए ऑनलाइन ‘जिहादी कोर्स’ शुरू
पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन Jaish-e-Mohammed (JeM) ने महिलाओं के लिए एक ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया है, जो न सिर्फ संगठन की भर्ती रणनीति में बड़े बदलाव को दर्शाता है बल्कि महिलाओं की भूमिका आतंकवादी संगठन के दायरे में बढ़ाने का संकेत भी देता है।
स्रोतों के अनुसार, इस कोर्स का नाम “Tufat al-Muminat” रखा गया है, और इसमें महिलाओं को 40 मिनट प्रति दिन की लेक्चर-शैली में ‘जिहादी कर्तव्यों’ की समझ दी जाएगी। इस कोर्स की फीस 500 पाकिस्तानी रूपए (लगभग ₹156) तय की गई है, जिसे शामिल होने के लिए महिलाएं पहले एक ऑनलाइन फॉर्म भरेंगी।
JeM ने पहले अपने लिए महिलाओं का एक यूनिट भी बनाया है जिसका नाम “Jamat ul Muminat” है। इस यूनिट के माध्यम से महिलाओं को संगठन के प्रचार-प्रसार और सहायक गतिविधियों में शामिल किया जाना है। उधार-उल्लेख के मुताबिक, इस यूनिट की कमान JeM के प्रमुख Masood Azhar की बहन Sadiya Azhar को सौंपी गई है।
इस कदम को विश्लेषकों ने महिलाओं को सीधे भर्ती और सक्रिय भूमिका में लाने की ओर एक रणनीतिक बदलाव माना है। यह इस प्रकार समझा जा सकता है कि संगठन अब पारंपरिक ‘पुरुष-केंद्रित आतंकवाद’ मॉडल से आगे बढ़कर महिलाओं को भी ‘सहायक’ या ‘युक्त भागीदार’ बनाने पर जोर दे रहा है, जिससे उसकी जालीदार जाल (network) और सामाजिक पहुँच दोनों बढ़ सकती है।
प्रशिक्षण-कोर्स की ऑनलाइन प्रकृति इस बात का संकेत है कि संगठन सामाजिक एवं तकनीकी साधनों का उपयोग कर रहा है ताकि महिलाओं को आरम्भ-स्थान (home) से ही जुटाया जा सके — खासकर उन इलाकों में जहाँ बाहर निकलना या सार्वजनिक रूप से सक्रिय होना महिलाओं के लिए कठिन है।
इस प्रकार का विस्तार आतंकवाद-रोधी नीतियों के लिए चिंता का विषय है क्योंकि महिलाएं Täter (आक्रामक भूमिका) या सहायक (logistic / प्रचार) दोनों तरह की भूमिकाओं में आ सकती हैं। इससे खुफिया एवं सुरक्षा एजेंसियों को नए प्रकार के जोखिमों का सामना करना पड़ सकता है — जैसे ऑनलाइन भर्ती, सोशल मिडिया-प्रचार, घरेलू स्तर पर आतंकी गतिविधियों की तैयारी इत्यादि।
इसके साथ ही, यह कदम पाकिस्तान में वित्तीय कार्रवाई-कार्यालय (FATF) द्वारा आतंक-मनी के खिलाफ उठाए जा रहे कदमों की सत्यता पर सवाल भी खड़ा करता है क्योंकि एक नामित आतंकी संगठन खुलेआम महिलाओं से फीस इकट्ठा कर रहा है।
भारत-पाकिस्तान के परिप्रेक्ष्य में देखें तो यह घटनाक्रम और अधिक गंभीर हो जाता है क्योंकि Jaish-e-Mohammed लंबे समय से भारत के खिलाफ सक्रिय रही है। भारत के लिए यह उस संकट का संकेत है कि आतंकी नेटवर्क अब और अधिक विविध रूप लेने की ओर हैं — इसलिए पारंपरिक सीमाओं, जिहाद-रीति और पुरुष-आधारित संरचनाओं से हटकर नया मॉडल तैयार हो रहा है।
अगले कुछ दिनों में यह देखने योग्य होगा कि इस ऑनलाइन कोर्स का प्रत्यक्ष असर क्या होगा — कितनी महिलाएं इसमें शामिल होती हैं, किस प्रकार का प्रचार-प्रसार किया जाता है, और किस तरह की गतिविधियाँ इसके अंतर्गत शुरू होती हैं। साथ ही, सुरक्षा एजेंसियों की प्रतिक्रिया, अंतरराष्ट्रीय दबाव और पाकिस्तान-अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भूमिका भी महत्वपूर्ण बनती जाएगी।
इस पूरे मामले ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि आतंकवाद सिर्फ भौतिक हथियारों या प्रशिक्षण शिविरों तक सीमित नहीं रहा — डिजिटल प्लेटफॉर्म, सामाजिक नेटवर्क और महिलाओं की भूमिका अब उसमें बराबर-बराबर समाहित हो चुकी है।



