दिल्ली-एनसीआर में लगातार बिगड़ते वायु प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कड़ा रुख अपनाया है। मंगलवार को सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने राजधानी और आसपास के इलाकों में फैली जहरीली हवा पर गंभीर चिंता जताते हुए कहा कि मौजूदा हालात मानव जीवन और स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक बन चुके हैं। कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि लोग मजबूरी में जहरीली हवा में सांस लेने को विवश हैं, जो सीधे तौर पर उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार और एनसीआर से जुड़े राज्यों से पूछा कि हर साल सर्दियों के मौसम में प्रदूषण का स्तर खतरनाक सीमा पार कर जाने के बावजूद ठोस और स्थायी समाधान क्यों नहीं निकल पा रहा है। अदालत ने पराली जलाने, निर्माण कार्यों से उड़ती धूल, वाहनों से निकलने वाले धुएं और औद्योगिक प्रदूषण को दिल्ली-एनसीआर की हवा खराब होने के प्रमुख कारण बताते हुए कहा कि सिर्फ अस्थायी पाबंदियों से समस्या का समाधान नहीं हो सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि जब एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) ‘गंभीर’ श्रेणी में पहुंच जाता है, तब स्कूलों में बच्चों, बुजुर्गों और बीमार लोगों की सेहत पर सबसे ज्यादा असर पड़ता है। कोर्ट ने सवाल उठाया कि क्या सरकारें तब भी केवल बैठकों और आदेशों तक ही सीमित रहना चाहती हैं, या फिर जमीनी स्तर पर ठोस कार्रवाई करने का इरादा है। अदालत ने यह संकेत भी दिया कि अगर हालात नहीं सुधरे तो और सख्त निर्देश दिए जा सकते हैं।
अदालत ने प्रदूषण नियंत्रण से जुड़े नियमों के प्रभावी क्रियान्वयन पर जोर देते हुए कहा कि जिम्मेदारी तय किए बिना हालात नहीं बदलेंगे। कोर्ट के मुताबिक, दिल्ली-एनसीआर की हवा सिर्फ पर्यावरण का मुद्दा नहीं, बल्कि जनस्वास्थ्य का गंभीर संकट बन चुकी है। इसलिए केंद्र और राज्य सरकारों को एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालने के बजाय समन्वय के साथ काम करना होगा।
सुप्रीम कोर्ट की इन सख्त टिप्पणियों के बाद एक बार फिर यह मुद्दा चर्चा के केंद्र में आ गया है कि क्या आने वाले समय में प्रदूषण से निपटने के लिए कोई दीर्घकालिक और प्रभावी नीति सामने आएगी। फिलहाल, अदालत की फटकार ने सरकारों पर दबाव जरूर बढ़ा दिया है, और उम्मीद की जा रही है कि इससे दिल्ली-एनसीआर के लोगों को साफ हवा में सांस लेने का हक दिलाने की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएंगे।
