दिल्ली हाईकोर्ट ने आज, 2 सितंबर 2025 को, शरजील इमाम और उमर खालिद समेत आठ आरोपियों की जमानत याचिका खारिज कर दी, जो 2020 में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हुए दंगे से जुड़े एक बड़े साजिश मामले से संबंधित थे। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि संविधान के अंतर्गत शांतिपूर्ण प्रदर्शन का अधिकार सभी को है, लेकिन “प्रदर्शन की आड़ में साज़िशन हिंसा की अनुमति नहीं दी जा सकती।”
यह सुनवाई अनलॉफ़ुल एक्टिविटीज प्रिवेंशन एक्ट (UAPA) के अंतर्गत हुई, जिसमें दंगों को भड़काने और देश की छवि को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर धूमिल करने की कथित साजिश का मामला है। अदालत ने इस घटना को “पूर्व-नियोजित और सुनियोजित साज़िश” बताया, जो देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा हो सकता है।
दिल्ली पुलिस के वकील ने अदालत को बताया कि दंगे एक सुनियोजित योजना के तहत बुलाए गए विरोध प्रदर्शन का परिणाम थे और आरोपियों को यूएपीए की धारा के तहत सख्त कार्रवाई का सामना करना चाहिए। अदालत ने यह भी कहा कि केस में मुकदमा लंबित है और ट्रायल में देरी को आधार बनाकर जमानत देना न्याय संगत नहीं होगा।
शरजील इमाम की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि उन्होंने इस मामले में कोई सक्रिय भूमिका नहीं निभाई है, वह 15 जनवरी 2020 के बाद दिल्ली में मौजूद नहीं थे, और उन्होंने व्हाट्सएप समूहों के ज़रिए हिंसा भड़काने में भी कोई योगदान नहीं दिया। साथ ही, उनकी लंबी हिरासत और घर परिवार की जिम्मेदारियों का हवाला देते हुए न्याय की गुहार की गई। বিচারालय ने इस दलील पर सहानुभूति जताई, लेकिन निर्णय अभी भी खारिज ही रहा।
नतीजन, अब उच्चतम न्यायालय ही उनकी आख़िरी उम्मीद बची है, अन्य कोई विधिक विकल्प उपलब्ध नहीं रह गया है। अदालत के सख्त रुख से साफ है कि न्यायिक प्रक्रिया में स्थिरता और संवैधानिक नियमों का उल्लंघन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
