मशहूर पंजाबी गायक और अभिनेता दिलजीत दोसांझ को ऑस्ट्रेलिया में होने वाले उनके आगामी कॉन्सर्ट से पहले खालिस्तानी संगठन ‘सिख्स फॉर जस्टिस (Sikhs For Justice – SFJ)’ की ओर से धमकी दी गई है। SFJ ने दावा किया है कि वह दिलजीत के 1 नवंबर को होने वाले शो को “शटडाउन” कराएगा। संगठन का आरोप है कि दिलजीत ने कुछ दिनों पहले टीवी शो ‘कौन बनेगा करोड़पति 17’ (KBC 17) के सेट पर अमिताभ बच्चन के पैर छुए थे, जिसे उन्होंने 1984 के सिख विरोधी दंगों में मारे गए लोगों के प्रति “अपमान” बताया है।
SFJ के प्रवक्ता गुरपतवंत सिंह पन्नू ने अपने बयान में कहा कि दिलजीत ने ऐसा करके “हर उस सिख शहीद, विधवा और अनाथ का अपमान किया है जो 1984 की हिंसा का शिकार हुआ था।” संगठन ने यह भी कहा कि उनका कॉन्सर्ट उस दिन आयोजित हो रहा है जब अकाल तख्त साहिब ने “सिख नरसंहार स्मृति दिवस (Sikh Genocide Remembrance Day)” घोषित किया है, और इसलिए यह आयोजन “संवेदनहीन” है। SFJ का यह भी दावा है कि 31 अक्टूबर 1984 को अमिताभ बच्चन ने “खून का बदला खून” का नारा दिया था, जिससे दंगों को भड़काने में मदद मिली थी।
दिलजीत दोसांझ की ओर से अब तक इस विवाद पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। हालांकि, ऑस्ट्रेलियाई पुलिस और कार्यक्रम आयोजकों ने सुरक्षा व्यवस्था को लेकर गंभीरता दिखाई है और कहा है कि कार्यक्रम के दौरान किसी भी अप्रिय घटना को रोकने के लिए पर्याप्त कदम उठाए जाएंगे।
यह पूरा मामला अब मनोरंजन और राजनीति दोनों क्षेत्रों में चर्चा का विषय बन गया है। जहां एक ओर दिलजीत के प्रशंसक इसे सांस्कृतिक श्रद्धा का प्रतीक मान रहे हैं, वहीं SFJ जैसे संगठन इसे राजनीतिक और धार्मिक दृष्टिकोण से देख रहे हैं। विश्लेषकों का कहना है कि इस विवाद ने एक बार फिर 1984 के सिख दंगों की संवेदनशीलता को उजागर किया है, और ऐसे मामलों में कलाकारों को अक्सर अनजाने में राजनीतिक विवादों के घेरे में घसीट लिया जाता है।
भारत सरकार ने पहले ही SFJ को एक उग्रवादी और प्रतिबंधित संगठन घोषित कर रखा है, जिस पर भारत की एकता और अखंडता को नुकसान पहुंचाने के आरोप हैं। विदेश मंत्रालय और खालिस्तान समर्थक समूहों के बीच लंबे समय से ऐसे मुद्दों पर मतभेद रहे हैं, खासकर जब यह भारतीय कलाकारों और सांस्कृतिक आयोजनों से जुड़ता है।
विशेषज्ञों के अनुसार, यह घटना केवल एक कॉन्सर्ट विवाद नहीं है बल्कि यह दिखाती है कि सांस्कृतिक प्रतीक, धार्मिक भावनाएं और ऐतिहासिक घाव कैसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर फिर से राजनीतिक हथियार बन जाते हैं।
