अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बड़ा अंतरराष्ट्रीय बयान जारी करते हुए नाइजीरिया को ‘Countries of Particular Concern (CPC)’, यानी विशेष चिंता वाले देशों की सूची में शामिल करने की घोषणा की है। ट्रंप ने कहा है कि नाइजीरिया में बीते कुछ वर्षों से ईसाई समुदाय पर लगातार हमले, हत्याएं और धार्मिक उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ रही हैं, जो अब “ईसाइयत के अस्तित्व के लिए गंभीर खतरा” बन चुकी हैं।
ट्रंप ने अपने बयान में कहा कि, “जब हजारों निर्दोष लोग केवल अपने धर्म के कारण मारे जा रहे हैं, तो यह सिर्फ स्थानीय संकट नहीं बल्कि पूरी मानवता के लिए खतरा है। नाइजीरिया में ईसाई समुदाय का नरसंहार रुकना चाहिए।” उन्होंने अमेरिकी कांग्रेस और विदेश विभाग से अपील की है कि नाइजीरिया के खिलाफ कड़े कदम उठाए जाएं, ताकि धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा की जा सके।
अमेरिकी विदेश विभाग के मुताबिक, CPC सूची में किसी देश को तभी शामिल किया जाता है जब वहां धार्मिक स्वतंत्रता का गंभीर उल्लंघन, धर्म आधारित हिंसा, या अल्पसंख्यकों पर सरकारी उपेक्षा के ठोस सबूत मिलते हैं। इस सूची में शामिल होने से नाइजीरिया पर आर्थिक प्रतिबंध, कूटनीतिक दबाव और मानवाधिकार जांच जैसी कार्रवाइयां भी लागू हो सकती हैं।
वहीं, नाइजीरिया सरकार ने अमेरिका के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा है कि देश में धार्मिक स्वतंत्रता पूरी तरह सुरक्षित है और सरकार किसी धर्म या समुदाय के खिलाफ भेदभाव नहीं करती। नाइजीरियाई विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, “हमारे देश में सभी नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त हैं। कुछ क्षेत्रीय हिंसक घटनाओं को पूरे देश पर थोपना अनुचित है।”
धार्मिक स्वतंत्रता पर नज़र रखने वाली कई वैश्विक एजेंसियों ने भी हाल के वर्षों में नाइजीरिया में बोको हराम, फुलानी मिलिशिया और अन्य चरमपंथी समूहों द्वारा ईसाई समुदाय पर हमलों की पुष्टि की है। इन संगठनों का कहना है कि 2020 से अब तक हजारों ईसाई मारे जा चुके हैं और सैकड़ों चर्च जलाए गए हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप का यह कदम न केवल मानवाधिकारों की वैश्विक बहस को तेज करेगा, बल्कि नाइजीरिया और अमेरिका के कूटनीतिक संबंधों पर भी गहरा असर डाल सकता है। आने वाले महीनों में यह देखने लायक होगा कि बाइडेन प्रशासन इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाता है — क्या वह ट्रंप की नीति को आगे बढ़ाएगा या उसे संतुलित करेगा।
