डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के राष्ट्रपति पद पर दोबारा वापसी तो कर ली है, लेकिन भारत में अब तक किसी अमेरिकी राजदूत की नियुक्ति नहीं हो सकी है। यह सवाल अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठने लगा है कि क्या यह देरी रणनीतिक है या प्रशासनिक उदासीनता का संकेत?
भारत और अमेरिका के रिश्ते पिछले कुछ वर्षों में काफी घनिष्ठ हुए हैं। रक्षा, व्यापार, तकनीक और कूटनीति जैसे कई क्षेत्रों में दोनों देश लगातार सहयोग कर रहे हैं। ऐसे में भारत जैसे अहम साझेदार देश में राजदूत की गैरमौजूदगी चौंकाने वाली है।
रिपोर्ट के अनुसार, ट्रंप प्रशासन में आंतरिक चर्चाएं तो चल रही हैं, लेकिन अभी तक किसी एक नाम को लेकर सहमति नहीं बन पाई है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप सरकार इस नियुक्ति को लेकर बेहद सतर्क है क्योंकि वे भारत में एक प्रभावशाली और अनुभवी राजनयिक को भेजना चाहते हैं जो मोदी सरकार के साथ मजबूत तालमेल बना सके।
कुछ विश्लेषकों का यह भी कहना है कि ट्रंप फिलहाल घरेलू नीतियों और चुनावी रणनीतियों में ज्यादा व्यस्त हैं, जिससे विदेशी नियुक्तियों को प्राथमिकता नहीं मिल पा रही।
भारत में अमेरिकी राजदूत की भूमिका सिर्फ द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने तक सीमित नहीं होती, बल्कि यह चीन जैसे देशों के प्रभाव को संतुलित करने में भी अहम भूमिका निभाती है।
अब देखना यह होगा कि ट्रंप प्रशासन इस अहम पद के लिए कब और किसे नियुक्त करता है, और वह व्यक्ति भारत-अमेरिका संबंधों को नई दिशा देने में कितना सफल रहता है।