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ट्रंप का टैरिफ था सबसे मूर्खतापूर्ण कदम, BRICS की जीत

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कोलंबिया यूनिवर्सिटी के वरिष्ठ अर्थशास्त्री और विश्वप्रसिद्ध थिंक टैंक, जेफ़्री सैक्स ने अमेरिका की पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सरकार द्वारा लगाए गए टैरिफ को देश के इतिहास की “सबसे मूर्खतापूर्ण नीति” बताया है। सैक्स का मानना है कि इस कदम से न केवल अमेरिका की अंतरराष्ट्रीय साख को नुकसान पहुंचा बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन भी अमेरिका के खिलाफ झुक गया।

सैक्स ने कहा कि ट्रंप प्रशासन की यह आर्थिक नीति दरअसल एक “रणनीतिक भूल” थी, जिसने अमेरिका के दीर्घकालिक हितों को कमजोर किया। उन्होंने खास तौर पर भारत के खिलाफ लगाए गए टैरिफ का ज़िक्र करते हुए कहा कि इसने अमेरिका और भारत के बीच वर्षों से बनी आपसी समझ और भरोसे को तोड़ दिया। उनके अनुसार, चाहे यह टैरिफ बाद में हटा भी दिया जाए, लेकिन भारत समेत कई देशों को यह संदेश मिल चुका है कि अमेरिका भरोसेमंद साझेदार नहीं रहा।

अर्थशास्त्री ने यह भी कहा कि ट्रंप प्रशासन के प्रमुख व्यापार सलाहकार पीटर नवारो इस नाकाम नीति के पीछे मुख्य ज़िम्मेदार थे। सैक्स ने उन्हें “अब तक के सबसे अक्षम अर्थशास्त्रियों में से एक” बताते हुए कहा कि उन्होंने न तो अर्थशास्त्र की गहराई को समझा और न ही वैश्विक व्यापार व्यवस्था की जटिलताओं का अंदाज़ा लगाया।

सैक्स का सबसे बड़ा दावा यह था कि इन टैरिफ नीतियों का सबसे बड़ा लाभ BRICS देशों को हुआ। ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका जैसे देश, जिन्हें पश्चिमी दबाव और नीतियों के कारण अक्सर अलग-थलग करने की कोशिश की जाती रही, वे इस निर्णय के बाद और भी करीब आ गए। सैक्स ने व्यंग्य करते हुए कहा, “डोनाल्ड ट्रंप अनजाने में BRICS देशों को एकजुट करने वाले सबसे बड़े सूत्रधार बन गए।”

उन्होंने स्पष्ट किया कि 25 प्रतिशत का भारी टैरिफ लगाकर ट्रंप ने व्यापार युद्ध शुरू किया, जिसका नतीजा यह हुआ कि चीन और भारत जैसे बड़े देशों ने अमेरिका की बजाय वैकल्पिक साझेदारियों की ओर रुख किया। यह बदलाव दीर्घकाल में अमेरिकी अर्थव्यवस्था और विदेश नीति दोनों के लिए घातक साबित हो सकता है।

विश्लेषकों का कहना है कि ट्रंप के इस कदम ने BRICS को वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक मोर्चे पर मजबूत आधार दिया है। ऊर्जा, व्यापार और वित्तीय तंत्र में BRICS अब अमेरिका और यूरोप के विकल्प के तौर पर तेजी से उभर रहा है। भारत जैसे देश, जो पहले अमेरिका और पश्चिम के नज़दीक माने जाते थे, अब रणनीतिक रूप से अधिक स्वतंत्र और विविध विकल्प तलाश रहे हैं।

सैक्स ने यह चेतावनी भी दी कि अगर अमेरिका ने अपनी नीतियों पर पुनर्विचार नहीं किया, तो वह भविष्य में एशिया और ग्लोबल साउथ के बड़े बाजारों से कट सकता है। उनका कहना है कि इस तरह की अल्पकालिक और आक्रामक नीतियां अमेरिका की वैश्विक नेतृत्व क्षमता को और कमजोर कर रही हैं।

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