
हिमाचल प्रदेश में पिछले 100 वर्षों में औसत तापमान में 1.6 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। यह बदलाव मामूली नहीं है—इसी के साथ यहां भूस्खलन, अचानक बाढ़ और बादल फटने की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन और अनियंत्रित विकास इसके मुख्य कारण हैं।
हिमाचल की जलवायु प्रणाली बेहद नाजुक है। अधिक तापमान से ग्लेशियर तेज़ी से पिघल रहे हैं, जिससे नदियों का प्रवाह अनियमित होता है और बाढ़ की आशंका बढ़ती है। साथ ही, मानसून के दौरान असामान्य रूप से भारी वर्षा के कारण मिट्टी कमजोर होकर खिसक जाती है।
दूसरी तरफ, सड़कों, सुरंगों और भवनों का अंधाधुंध निर्माण पहाड़ियों की स्थिरता को और कमजोर कर रहा है। विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि अगर विकास कार्यों में पर्यावरणीय संतुलन का ध्यान नहीं रखा गया तो हिमाचल में प्राकृतिक आपदाओं की मारक क्षमता और बढ़ सकती है।
स्थानीय प्रशासन और वैज्ञानिक संस्थानों ने चेताया है कि राज्य को अपनी विकास योजनाओं में जलवायु जोखिम का आकलन शामिल करना होगा। बिना योजना के विकास न केवल स्थानीय आबादी बल्कि हिमालयी क्षेत्र की पारिस्थितिकी के लिए भी गंभीर खतरा है।