हाल ही में माहौल ऐसा बना है कि वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यूरोप को आने वाले समय में एक नए हिमयुग-नुमा परिस्तिथि का सामना करना पड़ सकता है — और इसके पीछे मुख्य कारण है Atlantic Meridional Overturning Circulation (AMOC) नामक अटलांटिक महासागर की वह प्रमुख धारा, जो आज उसी तरह थमती हुई नजर आ रही है।
आइसलैंड ने इस धारा में आए संभावित बदलाव को राष्ट्रीय सुरक्षा खतरा घोषित कर दिया है। इस देश के जलवायु मंत्री ने कहा है कि यदि यह धारा ढह गई, तो उत्तरी यूरोप की गर्मी-सर्दी का संतुलन पूरी तरह बिगड़ेगा और वहाँ फिर से ऐसा मौसम बन सकता है जिसमें बर्फ-तूफान और ठंड बेहद तीव्र हो जाएँ।
धारा क्यों महत्वपूर्ण है
AMOC मुख्यतः उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों से गर्म पानी ऊपर की ओर ले जाती है और उत्तरी अक्षांशों की ओर सप्लाई करती है। इस प्रक्रिया से यूरोप में अपेक्षाकृत गर्म सर्दियाँ आती हैं। लेकिन अब इस धारा में ठंडे पानी और पिघलती बर्फ के कारण व्यवधान आ गया है। यदि धारा धीमी पड़ गई या बंद हो गई, तो उत्तरी यूरोप में तापमान में तीव्र गिरावट आएगी, बर्फ बढ़ेगी, समुद्री भूगर्भीय और मौसम-पैटर्न बदल जाएंगे।
विश्व-सापेक्ष असर: भारत-अफ्रीका में वर्षा-उलट-पलट
इस गंभीर बदलाव का असर केवल यूरोप तक सीमित नहीं होगा। वैज्ञानिकों के अनुसार भारत, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका जैसे क्षेत्रों में वर्षा के पैटर्न में बड़े बदलाव आने शुरू हो सकते हैं — जैसे बरसात अनियमित होना, सूखा-प्रवणता बढ़ना, साथ ही बाढ़-तूफानों का खतरा भी। AajTak उदाहरण के लिए भारत में मानसून पर यह धारा अप्रत्यक्ष रूप से असर डालती है, इसलिए इसके ठहराव से कृषि, जल-संसाधन आदि पर प्रतिकूल असर हो सकता है।
क्यों अब मामला अधिक चिंताजनक हुआ है
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आइसलैंड ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला बना दिया है — यह पहली बार है जब कोई देश जलवायु-मौसम परिवर्तन को इस तरह खतरनाक स्वरूप में देख रहा है।
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इतिहास में देखा गया है कि ऐसी धारा-विगत बदलावों के बाद तापमान में काफी गिरावट आई थी, खेती-शुष्कता बढ़ी थी, सामाजिक-आर्थिक संकट उत्पन्न हुआ था।
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ग्लोबल वार्मिंग के बावजूद, इस तरह का साइंटिफिक “टिपिंग-पॉइंट” संकेत है कि प्रणाली प्रतिक्रियाशील हो सकती है — यानी परिवर्तन अचानक और तीव्र हो सकते हैं।
आने वाले समय में क्या हो सकता है
अगर AMOC कमज़ोर हुई या रुक गई, तो उत्तरी यूरोप में सर्दियाँ लंबी और कठोर हो सकती हैं, बर्फ-दबा ज्यादा हो सकता है, समुद्री मार्ग बाधित हो सकते हैं। वहीं भारत-अफ्रीका-दक्षिण अमेरिका में वर्षा का समय, मात्रा और वितरण बदल सकते हैं जिससे कृषि-उत्पादकता, जल-प्रबंधन व सामाजिक सुरक्षा प्रभावित होगी।
