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भारत ने सिंधु जल का बहाव रोका, तालिबान सरकार का बड़ा फैसला — पाकिस्तान के लिए जलयुद्ध की आशंका

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अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बार फिर से जल और सुरक्षा को लेकर गंभीर तनाव उत्पन्न हो गया है, क्योंकि भारत ने पाकिस्तान को मिलने वाले सिंधु नदी के पानी का बहाव रोक दिया है, और इस फैसले के बाद अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने भी एक बड़ा जल संबंधी निर्णय लिया है, जिससे दक्षिण एशिया में जल सुरक्षा और राजनैतिक तनाव और गहरा सकता है। भारत के इस कदम के बाद तालिबान ने कुनार नदी पर बांध और पानी मोड़ने की योजना को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया है, जिसका असर पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में पानी की आपूर्ति पर पड़ सकता है।

भारत की यह कार्रवाई सिंधु जल समझौते (Indus Waters Treaty) को निलंबित करने के बाद सामने आई है, जिसे 1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता में भारत और पाकिस्तान के बीच लागू किया गया था और इसके तहत दोनों देशों को मिलकर नदी जल साझा करना होता था। लेकिन 23 अप्रैल 2025 को भारत ने इसे सुरक्षा कारणों से अस्थायी रूप से रोक दिया, और पाकिस्तान को मिलने वाले पानी को नियंत्रित करना शुरू कर दिया, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ गया है।

तालिबान के इस फैसले में कुनार नदी की भूमिका अहम है — यह नदी हिंदू कुश पर्वतमाला से निकलकर पाकिस्तान में जाकर सिंधु नदी से मिलती है और कृषि, पेयजल व बिजली उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण स्रोत है। तालिबान सरकार ने अब प्रस्ताव को मंज़ूरी के लिए आर्थिक आयोग को भेज दिया है, जिससे नांगरहार के दारुंता बांध के आसपास पानी को नियंत्रित करने की योजना को आगे बढ़ाया जा सके। इससे न केवल पाकिस्तान के सीमावर्ती इलाकों में पानी का बहाव कम हो सकता है, बल्कि कृषि और घरेलू जल आपूर्ति पर भी भारी असर पड़ेगा।

पक्ष विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि तालिबान की यह पानी नीति — भारत के सिंधु जल नियंत्रण के साथ — पाकिस्तान के लिए “टू-फ्रंट वाटर वॉर” जैसा माहौल पैदा कर सकती है। इन नीतिगत फैसलों के परिणामस्वरूप क्षेत्र में पानी की कमी और बढ़ सकती है, जिससे सामाजिक, कृषि और आर्थिक गतिविधियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। तालिबान-पाक सीमा पर पहले से जारी झड़पों और सीमा विवादों के बीच यह जल नीति और तनाव का नया मोड़ है।

भारत की ओर से सिंधु जल का नियंत्रित बहाव रोकने का निर्णय उस गंभीर सुरक्षा पृष्ठभूमि के बाद आया था जब जम्मू और कश्मीर के पहलगाम में अप्रैल में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने समझौते को निलंबित करने की घोषणा की थी। इस कदम को भारत ने राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से आवश्यक बताया था, जबकि पाकिस्तान ने इसका विरोध किया और इसे अनुचित तथा अपरिपक्व कदम करार दिया था।

अब तालिबान द्वारा कुनार नदी पर नियंत्रण बढ़ाने के प्रयासों के कारण पाकिस्तान के सामने जल संकट और भी गंभीर रूप ले सकता है, क्योंकि दोनों पड़ोसी देश — भारत और अफगान तालिबान — उसके पानी के स्रोतों को सीमित करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। यह स्थिति केवल क्षेत्रीय जल समझौतों को ही नहीं प्रभावित करती, बल्कि दक्षिण एशिया में व्यापक द्विपक्षीय और त्रिपक्षीय राजनैतिक परिदृश्य को भी बदल सकती है।

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