
चीन के तियानजिन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की द्विपक्षीय मुलाकात अंतरराष्ट्रीय राजनीति में चर्चा का विषय बन गई है। इस मुलाकात में दोनों नेताओं ने सहयोग, विश्वास और स्थिरता को बढ़ावा देने पर जोर दिया। लेकिन इस गर्मजोशी भरे माहौल ने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो को नाराज़ कर दिया।
मोदी-जिनपिंग की ‘केमिस्ट्री’
शिखर सम्मेलन में मोदी और जिनपिंग के बीच बातचीत को एक “सकारात्मक केमिस्ट्री” के रूप में देखा गया। दोनों नेताओं ने आपसी मतभेदों को पीछे छोड़कर आगे की राह तलाशने की बात कही। मोदी ने इस दौरान यह भी प्रस्ताव रखा कि भारत 2026 में होने वाले ब्रिक्स शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेगा।
नवारो की नाराज़गी
मोदी-जिनपिंग की इस नज़दीकी पर प्रतिक्रिया देते हुए पीटर नवारो ने कहा कि भारत की नीतियां अमेरिका के लिए चुनौतीपूर्ण हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि भारत रूस से बड़े पैमाने पर कच्चा तेल आयात कर रहा है, जिससे अप्रत्यक्ष रूप से रूस को यूक्रेन युद्ध जारी रखने में आर्थिक मदद मिल रही है। नवारो ने इसे “रूस की युद्ध मशीन को फाइनेंस करना” करार दिया।
टैरिफ को लेकर बड़ा बयान
नवारो ने यह भी दावा किया कि ट्रंप प्रशासन ने भारत पर पहले 25% और बाद में अतिरिक्त 25% शुल्क लगाया था, यानी कुल मिलाकर 50% टैरिफ। उनका कहना था कि भारत की कारोबारी नीतियों पर अंकुश लगाने और अमेरिकी उद्योगों को बचाने के लिए यह ज़रूरी था।
वैश्विक प्रभाव
मोदी और जिनपिंग की मुलाकात ऐसे समय में हुई है जब दुनिया में शक्ति संतुलन लगातार बदल रहा है। एक ओर रूस-यूक्रेन युद्ध ने वैश्विक ऊर्जा बाज़ार और कूटनीति को प्रभावित किया है, वहीं दूसरी ओर अमेरिका और चीन के बीच तनाव लगातार बढ़ रहा है। ऐसे में भारत का रूस और चीन दोनों के साथ संबंध बनाए रखना अमेरिका जैसे देशों को असहज कर रहा है।
भारत का रुख
भारत ने हमेशा यह कहा है कि उसकी विदेश नीति “राष्ट्रहित और सामरिक स्वायत्तता” पर आधारित है। रूस से ऊर्जा आयात को भारत ने अपनी आर्थिक ज़रूरतों और विकास के लिए आवश्यक बताया है। साथ ही भारत यह भी दोहराता रहा है कि वह शांति और स्थिरता का पक्षधर है तथा किसी भी युद्ध में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पक्ष नहीं लेता।



