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“अमेरिकी दबाव बेअसर, भारत ने बढ़ाया रूसी तेल का आयात—5 महीनों में सबसे ऊंचा स्तर”

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अमेरिका द्वारा रूस पर लगातार प्रतिबंध लगाने, खरीद पर सख्त चेतावनियां जारी करने और भारतीय ऊर्जा नीति पर दबाव बढ़ाने के बावजूद भारत ने रूसी कच्चे तेल की खरीद में कोई कमी नहीं की है। बल्कि नवंबर 2025 के आंकड़े बताते हैं कि भारत ने रूस से कच्चे तेल का आयात 5 महीनों के उच्च स्तर पर पहुंचा दिया है। यह साफ संकेत है कि भारत ने ऊर्जा सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए वैश्विक दबावों को दरकिनार करने का फैसला किया है।

ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने नवंबर महीने में रूस से लगभग €2.6 बिलियन मूल्य का कच्चा तेल आयात किया, जो अक्टूबर की तुलना में लगभग 4% की बढ़ोतरी है। इसके साथ ही भारत रूस का दूसरा सबसे बड़ा तेल खरीदार बना रहा। वैश्विक बाजार में रूस पर भारी प्रतिबंधों के बावजूद भारत के लिए रूसी तेल अभी भी सबसे सस्ता और टिकाऊ विकल्प साबित हो रहा है।

रिपोर्ट बताती है कि सरकारी क्षेत्र की रिफाइनरियों ने नवंबर में रूसी तेल की खरीद में उल्लेखनीय वृद्धि की। दूसरी ओर, कुछ निजी रिफाइनरियों—जो समय-समय पर अंतरराष्ट्रीय दबाव और कारोबारी जोखिमों को देखते हुए अपने आयात में सावधानी बरतती हैं—ने थोड़ी कटौती की, लेकिन कुल मिलाकर आयात का स्तर बढ़ा ही रहा।

भारत द्वारा खरीदा गया रूसी तेल सिर्फ घरेलू जरूरतों के लिए उपयोग नहीं होता, बल्कि इसका बड़ा हिस्सा रिफाइन कर विदेशी बाजारों में निर्यात भी किया जाता है। ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों को भारत ने कई खेपों में रिफाइंड फ्यूल बेचा है—यहां तक कि वे देश भी भारतीय रिफाइंड फ्यूल खरीदने को मजबूर हैं जो सीधे रूस से तेल नहीं खरीदते।

यूरोपीय संघ (EU) की पाबंदियों और अमेरिकी चेतावनियों के बावजूद भारत ने कहा है कि उसकी ऊर्जा जरूरतें और राष्ट्रीय हित सर्वोपरि हैं। भारत स्पष्ट कर चुका है कि वह कच्चे तेल के स्रोतों में विविधता बनाए रखेगा, लेकिन सस्ते और भरोसेमंद विकल्प को छोड़ने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।

CREA की रिपोर्ट के अनुसार कहा जा रहा है कि यदि यह ट्रेंड जारी रहा, तो आने वाले महीनों में रूसी कच्चे तेल का हिस्सा भारत की कुल तेल आयात टोकरी में और भी ज्यादा बढ़ सकता है।

भारत का यह रुख अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में भी संदेश देता है कि वह अपने आर्थिक हितों पर किसी भी तरह का बाहरी दबाव स्वीकार करने के मूड में नहीं है और अपनी ऊर्जा रणनीति को विश्व बाजार की स्थितियों और घरेलू जरूरतों के अनुसार खुद तय करेगा।

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