
वीज़ा विवाद के बीच भारतीय मूल के दो टैलेंटेड को मिला CEO का पद
अमेरिका में वीज़ा नियमों को सख्त किए जाने और विशेषकर एच-1बी वीज़ा शुल्कों में इजाफे की चर्चाओं के बीच यह एक ऐसा पल है जिसने ध्यान खींचा है। दो प्रमुख अमेरिकी कंपनियों ने हाल ही में भारत में जन्मे दो वरिष्ठ पेशेवरों को सीईओ का पद सौंपा है — यह कदम कई मायनों में ज़रूरी संदेश देता है।
पहला नाम है श्रीनिवास गोपालन का, जो 1 नवंबर से टी-मोबाइल के सीईओ बनेंगे। गोपालन, जो वर्तमान में कंपनी के मुख्य परिचालन अधिकारी (COO) हैं, माइक सीवर्ट की जगह लेंगे। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत हिंदुस्तान यूनिलीवर से की और उसके बाद भारती एयरटेल, वोडाफोन, कैपिटल वन तथा डॉयचे टेलीकॉम जैसे बड़े नामों में नेतृत्व किया। टी-मोबाइल में उनकी जिम्मेदारियों में ग्राहक अनुभव (customer experience), 5G, AI तथा डिजिटल परिवर्तन (digital transformation) की पहलों का नेतृत्व करना शामिल है।
दूसरा नाम है राहुल गोयल का, जिन्हें 1 अक्टूबर से मोल्सन कूर्स (Molson Coors) कंपनी का अध्यक्ष और सीईओ बनाया गया है। भारत में जन्मे गोयल ने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई मैसूर से की और इसके बाद अमेरिका जाकर बिजनेस की पढ़ाई पूरी की। उन्होंने कंपनी में 24 वर्ष से अधिक समय काम किया है और विभिन्न भूमिकाएँ संभाली हैं। मोल्सन कूर्स के बोर्ड ने उन्हें विकास की अगली पड़ी हुई चुनौतियों को आगे बढ़ाने तथा कंपनी की विरासत को आगे ले जाने के लिए सही व्यक्ति बताया है।
महत्त्व एवं परिणाम:
प्रतिभा और योग्यता की जीत: इन नियुक्तियों से यह संदेश जाता है कि चाहे वीज़ा नियम कितने भी सख्त हों, कंपनियाँ प्रदर्शन और नेतृत्व कौशल को प्राथमिकता दे रही हैं। नीति-चुनौतियों के बावजूद टैलेंट की चयन प्रक्रिया में असक्षमता या भेदभाव स्वीकार नहीं किया जा रहा है।
नियमों और राजनीति की पृष्ठभूमि: अमेरिकी प्रशासन द्वारा एच-1बी वीज़ा आवेदन शुल्कों में वृद्धि और वीज़ा प्रक्रिया को कठोर करने के फैसलों के बीच ये प्रमोशन ऐसे समय में हुए हैं जब विदेशी पेशेवरों को मिलने वाली नौकरियों पर राजनीतिक दबाव भी है। MAGA-ग्रुप और अन्य विचारधाराएँ यह दावा करते रहे हैं कि विदेशी श्रमिक अमेरिका में नौकरियाँ छीन रहे हैं। पर ये नियुक्तियाँ यह दिखाती हैं कि कंपनियाँ इन तर्कों से आगे बढ़कर चल रही हैं।
प्रेरणा और उदाहरण: भारतीय प्रशासक, तकनीशियन और व्यवसायी जो विदेशों में रहते हैं या काम करते हैं, उनके लिए ये दोनों व्यक्तियों की सफलता प्रेरणादायक है। यह एक उदाहरण है कि कैसे कोई व्यक्ति मानसिक प्रतिबन्धों और नीतिगत चुनौतियों को पार कर सकता है, यदि उसकी योग्यता स्पष्ट हो और वह लगातार प्रदर्शन करता हो।
भविष्य की चुनौतियाँ: हालांकि, निवृत्त वीज़ा नीतियों का असर अभी भी उन हजारों पेशेवरों पर पड़ा है जो एच-1बी वीज़ा पर कार्यरत हैं या आवेदन करने की सोच रहे हैं। लागत वृद्धि, आवेदन की प्रक्रिया में देरी, तथा अप्रत्याशित नियमों में बदलाव अभी भी चिंताएँ हैं। यह देखना होगा कि ये नियुक्तियाँ आगे वीज़ा नीति और प्रवासन (immigration) की बहसों को कैसे प्रभावित करेंगी।