भारतीय महिला क्रिकेट टीम की यह कहानी सिर्फ एक खेल की जीत नहीं, बल्कि संघर्ष, जज़्बे और आत्मविश्वास की दास्तान है। कभी यह टीम उधार के बैट-पैड से खेलती थी, अपने हाथों से यूनिफॉर्म सिलती थी और बिना रिजर्वेशन के ट्रेन में सफर करती थी। 1973 में महेंद्र कुमार शर्मा ने लखनऊ में महिला क्रिकेट संघ (WCAI) की स्थापना की, तब जाकर इस खेल को एक संगठित रूप मिला।
डायना एडुल्जी, शांता रंगास्वामी और संध्या अग्रवाल जैसी खिलाड़ियों ने कठिन परिस्थितियों में टीम को आगे बढ़ाया। 1976 में भारत ने वेस्टइंडीज़ के खिलाफ पहला महिला टेस्ट मैच खेला। उस समय मैदान में दर्शक बहुत कम थे, लेकिन उस मैच ने आने वाले सफर की नींव रख दी।
2005 में मिताली राज की कप्तानी में टीम ने पहली बार महिला विश्व कप फाइनल में जगह बनाई और 2017 में लॉर्ड्स के मैदान पर इंग्लैंड से हार के बावजूद भारतीय टीम ने दुनिया को दिखाया कि अब महिलाएं सिर्फ खेल नहीं रहीं, इतिहास लिख रही हैं। 2006 में बीसीसीआई ने महिला क्रिकेट को अपने अधीन लिया, जिससे प्रोफेशनल ट्रेनिंग और बेहतर सुविधाओं का रास्ता खुला।
जय शाह के नेतृत्व में हाल के वर्षों में महिला खिलाड़ियों को पुरुष खिलाड़ियों के बराबर वेतन और विमेंस प्रीमियर लीग (WPL) जैसी नीतियों ने इस बदलाव को और मजबूती दी। 2025 विश्व कप की जीत ने यह साबित कर दिया कि भारतीय महिला क्रिकेट अब केवल “भाग लेने” के लिए नहीं, बल्कि “विजय पाने” के लिए खेलती है।
यह जीत सिर्फ ट्रॉफी की नहीं, बल्कि उन सपनों की जीत है जो छोटे कस्बों की गलियों से निकलकर बड़े मंच तक पहुंचे। यह कहानी हर उस बेटी की है जिसे कभी कहा गया था—“यह खेल तुम्हारे बस का नहीं।” अब वही बेटियां भारत का सिर गर्व से ऊँचा कर रही हैं।
