
2008 के मालेगांव बम धमाके में गवाह रहे मिलिंद जोशी राव ने एनआईए की विशेष अदालत में बड़ा खुलासा किया है कि महाराष्ट्र एंटी-टेररिज्म स्क्वाड (ATS) के अधिकारियों ने उन्हें कई दिनों तक ग़ैरकानूनी हिरासत में रखा और उनपर योगी आदित्यनाथ सहित कई RSS नेताओं को फंसाने का दबाव डाला गया। उन्होंने कहा कि उन्हें यह नाम लेने पर कहा गया ताकि इस मामले को “भगवा आतंकवाद” से जोड़कर दिखाया जा सके। इस दावे की गंभीरता पर न्यायालय ने भी चिंता जताई है।
विशेष न्यायाधीश A.K. लहोती के विस्तृत 1,000 पन्नों के फैसले में कहा गया है कि कुल 39 गवाहों में से अधिकांश ने यह स्वीकार किया कि उन्होंने अपनी बयानबाज़ी स्वेच्छा से नहीं दी थी, बल्कि ATS के दबाव में दी गई थी। कई गवाहों ने कथित यातना और गलत तरीके से बयान लिखवाने की बात सामने रखी।
न्यायालय ने यह निष्कर्ष निकाला कि अभियोजन पक्ष ने पर्याप्त और विश्वसनीय सबूत प्रस्तुत नहीं किए। इसमें महत्वपूर्ण गवाहों को पेश न करना, गवाहों के बयान देने में देरी, और विवादित बयानविवरण शामिल हैं। अदालत ने यह भी माना कि घेराबंदी और बयानबाज़ी में ATS की कार्यप्रणाली में कई कमी पाई गईं, जिसके कारण सात आरोपियों को बरी किया गया।
मिलिंद राव जोशी ने विशेष रूप से बताया कि ATS अधिकारियों ने उन्हें बताया कि अगर उन्होंने चार अन्य RSS नेताओं—स्वामी असीमानंद, इंद्रेश कुमार, प्रज्ञा सिंह ठाकुर और प्रोफ़ेसर देवधर—के अलावा योगी आदित्यनाथ का नाम नहीं लिया, तो उन्हें रिहा नहीं किया जाएगा। उनका कहना था कि उन्होंने पूरी तरह बयान को ATS द्वारा लिखवाया गया था, न कि स्वयं लिखा था।
अन्य पूर्व ATS अधिकारियों के भी आरोप रहे कि केस को भगवा आतंकी रूप में पेश करने की साजिश की जा रही थी। पूर्व ATS सदस्य महबूब मुजावर ने आरोप लगाया कि RSS प्रमुख मोहन भागवत का नाम भी शामिल किया जाना था। इन सारी घटनाओं ने जांच की निष्पक्षता और प्रक्रियागत नैतिकता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।