
बिहार में 2025 के विधानसभा चुनावों की सरगर्मियाँ और तेज हो गई हैं, ऐसे समय में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया है जब कांग्रेस ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह तेजस्वी यादव को अपना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं करेगी। इस निर्णय की घोषणा उस पृष्ठभूमि पर हुई है जहाँ दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने IRCTC घोटाले से जुड़े मामलों में तेजस्वी यादव, उनके पिता लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी के खिलाफ आरोप तय किए हैं। (आधार: अमर उजाला)
IRCTC घोटाले की जांच के दायरे में यह आरोप है कि रेलवे मंत्रालय के कार्यकाल के दौरान, IRCTC के कुछ होटल ठेकों में अनियमितताएँ की गई थीं, और इन ठेकों के बदले मामला से जुड़े व्यक्तियों को लाभ पहुँचाया गया था। कोर्ट के इस कदम के बाद कांग्रेस के लिए तीव्र राजनीतिक स्थिति बन गई है, क्योंकि इस तरह का मामला चुनावों की पूर्व संध्या पर अवसरों और चुनौतियों दोनों के द्वार खोलता है।
कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने कहा है कि इस तरह की सूरत में अगर तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किया जाए, तो वह विरोधियों को एक बड़ा हथियार दे सकती है। पार्टी के अंदर यह तर्क जोर पकड़ रहा है कि चुनावी रणनीति और गठबंधन समीकरणों के लिहाज से यह निर्णय ज़रूरी था। वैसे भी, IRCTC मामले के आरोपों को लेकर भाजपा समेत अन्य दल पहले से ही कांग्रेस और राजद पर लगातार हमला कर रहे थे।
यह निर्णय महागठबंधन (या इंडिया ब्लॉक) के भीतर असमंजस की स्थिति को भी बढ़ा सकता है। क्योंकि राजद की तरफ़ से तेजस्वी यादव के नेतृत्व को लेकर उम्मीदें थीं। अब यह देखना होगा कि राजद इस कांग्रेस की मंशा को कैसे लेता है — क्या वह अपने उम्मीदवारों को अधिक स्वतंत्रता देगा, या मजबूरी में नए चेहरे पर विचार करेगा।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस फैसले का असर मतदाताओं के दिलों पर भी पड़ सकता है। कुछ मतदाताओं को यह समझ हो सकती है कि कांग्रेस गंभीर है और किसी भी घोटाले से जुड़े नाम को मुख्यमंत्रियल दावेदार नहीं बनाएगी। लेकिन दूसरी ओर, तेजस्वी यादव समर्थकों में निराशा की लहर भी उठ सकती है।
उल्लेखनीय है कि इस पूरे घटनाक्रम के बीच, कांग्रेस को संतुलन साधना होगा — इसे दिखाना होगा कि वह चुनावी स्वाश्रय और नैतिकता दोनों को महत्व देती है, साथ ही यह ध्यान रखना होगा कि राजद और अन्य गठबंधन सहयोगियों में टूट न पैदा हो।
समय ही बताएगा कि इस कदम का राजनीतिक लाभ कांग्रेस को मिलता है या यह क्षति का बोध बना कर रह जाता है। बिहार की जनता की सोच इस फैसले को चुनावी पटल पर किस रूप में स्वीकार करेगी, यह आगामी दिनों की राजनीतिक लड़ाई तय करेगी।